जहां गहरी ख़ामोशी होती है, वहीं सबसे ज़्यादा शोर होता है. जो चला जाता है, वह हमेशा हमेशा के लिए आसपास ही रह जाता है. कुछ ऐसे ही विरोधाभासों को बयां करती है जॉन एलिया की यह ग़ज़ल.
अजब इक शोर सा बरपा है कहीं
कोई खामोश हो गया है कहीं
है कुछ ऐसा के जैसे ये सब कुछ
अब से पहले भी हो चुका है कहीं
जो यहां से कहीं न जाता था
वो यहां से चला गया है कहीं
तुझ को क्या हो गया, के चीज़ों को
कहीं रखता है, ढूंढ़ता है कहीं
तू मुझे ढूंढ़, मैं तुझे ढुंढू
कोई हम में से रह गया है कहीं
इस कमरे से हो के कोई विदा
इस कमरे में छुप गया है कहीं
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