हम हर चीज़ को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं, पर मौत की अनदेखी नहीं कर सकते हैं. कुंवर नारायण की छोटी-सी कविता ‘घंटी’ इस सच को बयां करती है.
फ़ोन की घंटी बजी
मैंने कहा-मैं नहीं हूं
और करवट बदल कर सो गया
दरवाज़े की घंटी बजी
मैंने कहा-मैं नहीं हूं
और करवट बदल कर सो गया
अलार्म की घंटी बजी
मैंने कहा-मैं नहीं हूं
और करवट बदल कर सो गया
एक दिन
मौत की घंटी बजी…
हड़बड़ा कर उठ बैठा
मैं हूं… मैं हूं… मैं हूं…
मौत ने कहा
करवट बदल कर सो जाओ
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