प्यार और ज़िंदगी के सही मायने बताती फ़िराक़ गोरखपुरी की अनूठी रचना.
ज़िंदगी क्या है, ये मुझसे पूछते हो दोस्तों
एक पैमां है जो पूरा होके भी न पूरा हो
बेबसी ये है कि सब कुछ कर गुजरना इश्क़ में
सोचना दिल में ये, हमने क्या किया फिर बाद को
रश्क़ जिस पर है ज़माने भर को वो भी तो इश्क़
कोसते हैं जिसको वो भी इश्क़ ही है, हो न हो
आदमियत का तक़ाज़ा था मेरा इज़हारे-इश्क़
भूल भी होती है इक इंसान से, जाने भी दो
मैं तुम्हीं में से था कर लेते हैं यादे-रफ्तगां
यूं किसी को भूलते हैं दोस्तों, ऐ दोस्तों!
यूं भी देते हैं निशान इस मंज़िले-दुश्वार का
जब चला जाए न राहे-इश्क़ में तो गिर पड़ो
मैकशों ने आज तो सब रंगरलियां देख लीं
शेख़ कुछ इन मुंहफटों को दे-दिलाक चुप करो
आदमी का आदमी होना नहीं आसां ‘फ़िराक़’
इल्मो-फ़न, इख्लाक़ो-मज़हब जिससे चाहे पूछ लो
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