दुनिया एक बाज़ार है. यहां हर चीज़ की क़ीमत चुकानी होती है. आज हम देश की आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. एक आज़ाद मुल्क़ कहलाने के लिए हमें विभाजन की लकीरों से गुज़रना पड़ा. जय राय की कविता मुल्क़ का सौदा बता रही है कि आज़ादी के इस सौदे में एक बड़े तबके का हाथ ख़ाली रह गया.
दूर-दूर तक पता किया
मेरा पाकिस्तान में कोई नहीं रहता
हर बार सोचता हूं, फिर ऐसा क्यों होता है
दोनों तरफ़ से जब किसी को कहते हुए सुनता हूं
बंटवारे के बाद हमारा परिवार पाकिस्तान चला गया
या हिंदुस्तान चला आया
मेरी सोच की सुई बस वहीं जाकर अटक जाती है
क्या सोचकर उसने नए मुल्क़ में जाने का फ़ैसला किया होगा
क्या गुज़री होगी उसपर, जो अपना घर-बार छोड़ दिया होगा
हर बार मेरा गला भर आता है यह सोच कर
कितनी मर्तबा याद करता होगा वो अपना घर
उन पुरानी गलियों को, जो अब उसका ना रहीं
आज भी जब कोई लगाता होगा चक्कर
बार-बार घूमता होगा सरकारी वीज़ा दफ़्तर
उससे सवाल पूछा जाता होगा
किससे मिलना है?
क्यों मिलना है?
उसपर बड़े यक़ीन के साथ
शक किया जाता होगा!
सुना है सरकारी रंजिश में
एक दूसरे को चाहने वालों के
टूट जाते हैं दिल
बताते हैं कि जाना तो अब भी चाहते हैं पर क्या करें
सरकारें राह में रोड़ा हैं
कुछ तो बताते हुए फफक पड़ते हैं
कि अभी कुछ दिन पहले ही
उनका इंतक़ाल हो गया
अरसा गुज़र गया
पर आज भी बहुत प्यार करते थे मुझसे
मैं बंटवारे के बाद कभी मिल नहीं पाया
सिर्फ़ बात हो जाती थी कभी-कभी
जब कभी भी लगता है कि हम मिलने वाले हैं
एक धमाका हो जाता है सरहद पर
कौन करता है पता नहीं
लेकिन उसकी धमक दूर-दूर तक जाती है
देखने में तो सब एक जैसे हैं, अपने से लगते हैं
फिर पता नहीं दो देश क्यों बना दिया?
क्या सब से पूछा था
कि क्या, क्या कहते हैं आप?
टेलीविज़न पर देखा
कुछ दिन पहले पंजाब से एक दादा जी पाकिस्तान गए थे
लौट कर आए तो उनकी नातिन ने पूछा
कैसा है पाकिस्तान दादाजी?
दादा जी ने रोते हुए कहा
सब एक जैसा ही है बेटा
लोग भी एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं
बस हमारी सरकारें अलग हैं
दादा जी की तरह दोनों तरफ़ से कितने लोग
दादा बन गए होंगे अपनों से मिलने के इंतज़ार में
सन 47 ने दो देश बना दिए सरहद पर कंटीले तार बिछा दिए
अब झांकते है हमारे अरमान एक दूसरे को
अब भी तमाम लोगों की कसक तो यही है
सौदा कुछ ख़ास जमा नहीं
आने जाने और फिर कभी ना लौट आने में
Illustration: Pinterest