समाज ही नहीं, साहित्य जगत में भी अच्छे लेखकों को दलित और पिछड़ी जातियों से होने का खामियाज़ा भुगतना पड़ता है. वे अपनी कविताओं और कहानियों में जब अपना भोगा हुआ संघर्ष लिखते हैं तो उसे कथित अच्छी कविता के तौर पर नहीं देखा जाता. यह व्यंग्यात्मक कविता साहित्य जगत में होनेवाले इसी भेदभाव की बानगी है.
अच्छी कविता
अच्छा आदमी लिखता है
अच्छा आदमी कथित ऊंची जात में पैदा होता है
ऊंची जात का आदमी
ऊंचा सोचता है
हिमालय की एवरेस्ट चोटी की बर्फ़ के बारे में
या नासा की
चांद पर हुई नई खोजों के बारे में
अच्छी कविता
कोई समाधान नहीं देती
निचली दुनियादार ज़िन्दगी का
अच्छी कविता
पुरस्कृत होने के लिए पैदा होती है
कोई असहमति-बिंदु
नहीं रखती
निर्णायकों, आलोचकों और संपादकों के बीच
अच्छी कविता
कथा के क़र्ज़ को महसूस नहीं करती
अच्छी कविता
देश-धर्म, जाति
लिंग के भेदाभेदों के पचड़े में नहीं पड़ती
अवाम से बावस्ता नहीं और
निज़ाम से छेड़छाड़ नहीं करती
अच्छी कविता
बुरों को बुरा नहीं कहने देती
अच्छी कविता
अच्छा इंसान बनाने का ज़िम्मा नहीं लेती
अच्छे शब्दों से
अच्छे ख़्यालों से
सजती है अच्छी कविता
अच्छी कविता
अनुभव और आत्मीय सबकी दरकार नहीं रखती
कवि के सचेतन
संकलन की परिणति होती है अच्छी कविता
अच्छी कविता
अच्छे सपने भी नहीं देती
अच्छे समय में साथ ज़रूर नहीं छोड़ती
अच्छी कविता की
अच्छाई पूर्वपरिभाषित होती है
अच्छी कविता
अच्छे दिनों में अच्छे जनों में
हमेशा मुस्तैदी और
मजबूती से उपस्थित रहती है
पर बुरे वक़्त में
किसी के काम नहीं आती
अच्छी कविता
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