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Home ओए हीरो

आख़िर क्या है जीवन का मक़सद?

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
July 8, 2024
in ओए हीरो, मेरी डायरी
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life-mantra
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क्या आपको भी लगता है कि ज़िंदगी में कोई मज़ा नहीं है, रस नहीं है? तो फिर आपको जाने-माने गांधीवादी हिमांशु कुमार  की डायरी का यह पन्ना ज़रूर पढ़ना चाहिए, ताकि आप जान सकें कि जीवन को आख़िर कैसे जिया जाना चाहिए.

ऐसा बहुत सारे लोगों के साथ होता है कि उन्हें लगता है कि ज़िंदगी में कोई मज़ा नहीं है, रस नहीं है, जोश नहीं है. उन्हें लगता है कि जीवन में थकान है, एक निराशा है, ऊब है, अवसाद है… आख़िर इसकी वजह क्या है?

वजह यह है कि ज़िंदगी को हम समझ ही नहीं पाए, क्योंकि असल में ज़िंदगी का कोई मक़सद नहीं है. हम गलतफहमी में ज़िंदगी का मक़सद ढूंढने लगते हैं, जैसे- हमें लगता है शादी हो जाएगी तो ज़िंदगी का मक़सद मिल जाएगा या बच्चे हो जाएंगे तो ज़िंदगी ख़ुशहाल हो जाएगी या नौकरी मिल जाएगी या तरक़्क़ी मिल जाएगी या बिज़नेस चल पड़ेगा तब ज़िंदगी को मक़सद मिल जाएगा… लेकिन यह सब मिल जाने के बाद भी लगता है इस सब का कोई महत्व नहीं है यह तो कोई मक़सद नहीं है.

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असल में, आप ज़िंदगी में हाइलाइट में जीना चाहते हैं. बड़ी घटनाओं को होते हुए देखना चाहते हैं. नाम, यश, पैसा, ताली, वाह-वाह चाहते हैं… लेकिन मज़ा देखिए, कुछ दिन बाद उससे भी ऊब होने लगती है.

सच्चाई ये है कि ज़िंदगी का मज़ा कुछ पा लेने में नहीं है. ज़िंदगी का मज़ा या उसका मक़सद सिर्फ़ उसे हर क्षण जीने में है. किसी के काम आइए और ख़ुश हो जाइए. कहीं नाइंसाफ़ी हो रही हो इंसाफ़ के लिए आवाज़ उठाइ्य और ख़ुश हो जाइए.

आप कहीं जा रहे हैं तो आपके आसपास आने-जाने वाले लोगों के चेहरे पर ख़ुशी देखकर ख़ुश होइए. बस या ट्रेन में बैठ कर लोगों को ख़ुश देख कर ख़ुश हो जाइए. पड़ोसियों की ख़ुशी देख कर ख़ुश होइ्ए. बहती हवा को महसूस करिए और ख़ुश हो जाइए. खिलते हुए फूल को, चहचहाती हुई चिड़िया को, उगते हुए सूरज को, बरसते पानी को देखकर ख़ुश होइए.

सोते समय बिस्तर की नरमी को महसूस कीजिए, जिस चादर को ओढ़ रहे हैं उसे महसूस कीजिए, तकिए को महसूस कमरे को महसूस कीजिए. खाना खाते समय खाने को महसूस कीजिए, नहाते समय पानी को महसूस कीजिए. एक बच्चे की तरह हर समय उत्साह, कौतूहल और जिज्ञासा से भरे रहिए.

ख़ुद को ज्ञानी मत समझिए. जीवन प्रतिक्षण खिल रहा है, उसे प्रतिक्षण महसूस कीजिए. उसे प्रतिक्षण जीना पड़ता है और यही जीवन का मक़सद है. कहीं कोई जन्नत, कहीं कोई दोज़ख नहीं. कहीं कोई स्वर्ग नहीं, कही कोई नर्क नहीं, कहीं कोई बैकुंठ नहीं है.
इस (वर्तमान) क्षण को अच्छे से जी लेना ही स्वर्ग है. इसे ऊब के साथ रोते एक कुढ़ते हुए जीना नर्क है.

फ़ोटो साभार: फ्रीपिक

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