शहतूत (मलबेरी) के फल मार्च से मई तक पेड़ पर लदे रहते हैं. इनमें गुलाबी, बैगनी, काला और लाल रंग एंथोसायनिन पिगमेंट्स पाए जाने के कारण होता है. ये पिग्मेंट ऐंटीकैंसर होते हैं. इसके अलावा भी शहतूत और उसकी पत्तियों के ढेर सारे हेल्थ बेनिफ़िट्स है, जिनके बारे में डॉक्टर दीपक आचार्य से जान लेने के बाद आप शहतूत को अपनी डायट में ज़रूर शामिल कर लेंगे, हमें इस बात का भरोसा है.
आज शहतूत से जुड़ी ऐसी जानकारी दूंगा जो आपको झनझना देगी. मज़े की बात ये है कि शहतूत के फल जितने गुणकारी होते हैं, उससे कहीं ज़्यादा असरदार इसकी पत्तियां होती हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि इसकी पत्तियां हार्ट की समस्याओं से लेकर ब्लडप्रेशर, डायबिटीज़ और कई लाइफ़स्टाइल रिलेटेड डिस्ऑर्डर्स में भी फ़ायदेमंद है.
बात शुरू करता हूं कई साल पहले की अपनी चीन यात्रा से. हुआ दरअसल ये कि ‘वर्ल्ड बायोडायवर्सिटी समिट’ के सिलसिले में चीन जाना हुआ और अपना प्रेज़ेंटेशन देने के बाद मैं बाक़ी अन्य मीटिंग्स को गच्चा देकर बाहर तफ़रीह मारने चल दिया. सड़कों पर आवारापन करते हुए मुझे एक बुज़ुर्ग दंपत्ति का टी स्टाल दिखा, आदतन बुज़ुर्गों से बातचीत करने और कुछ सीखने मैं उनके स्टोर पर थम गया. वहां दुनियाभर के टीमटाम की चायें मिल रही थी. किसी एक स्पेशल चाय के बारे में पूछने पर बुज़ुर्ग ने बताया कि ‘मलबेरी टी’ चखना चाहिए. मलबेरी यानी शहतूत. यहां शहतूत के फलों और पत्तियों की चाय उपलब्ध थी, मैंने ट्राइ किया और चखते ही एकदम सनसना गया, एकदम सॉलिड टेस्ट. चुस्कियां मारते-मारते इस चाय की ख़ूबियों के बारे में उन बुज़ुर्ग से जो जानकारी मिली, वो हैरान करने वाली थी. उन्होंने बताया कि नज़दीकी मल्टीस्पेशलिटीअस्पताल में इस चाय की ग़ज़ब खपत है, डॉक्टर्स अपने मरीज़ों को दिन में कम से कम दो बार इस चाय को पिलाते हैं. चीन में पारंपरिक तौर से इस चाय का उपयोग कैंसर, डायबिटीज़ और हार्ट जैसी समस्याओं में ख़ूब किया जाता है.
अब आपके दोस्त दीपक आचार्य का देसी अनुभव भी जानिए, इत्ता तो बनता ही है…! डांग (गुजरात) में हर्बल इनसाइक्लोपीडिया और जानकार स्वर्गीय जानू दादा को डॉक्यूमेंट करने और उनके साथ फ़ील्ड पर काम करने का एक लंबा अनुभव मिला है मुझे. कई सालों पहले यानी क़रीब 2006-07 में उन्होंने लिवर में सूजन और शुगर के रोगियों के लिए शेतुर (शहतूत का गुजराती नाम) की पत्तियों का रस देने की बात बताई थी. उस वक़्त दादा की उम्र करीब 88 साल थी. पूजनीय जानू दादा के इस अनुभव को जब मैंने आधुनिक रिसर्च पेपर्स के ज़रिए क्रॉस चेक किया तो चौंक गया. कई टेस्ट ट्यूब स्टडीज़ बताती हैं कि पत्तियों का एक्स्ट्रैक्ट लिवर में फ़ैट फ़ॉर्मेशन को कम करता है, यानी फ़ैटी लिवर को दुरुस्त करता है. जानू दादा का एक्स्पीरियंस यक़ीनन इन एक्स्पेरिमेंट्स से ज़्यादा सॉलिड था!
चीन वाले अनुभव के बाद ख़ूब सारे रिसर्च पेपर्स खंगाले, कई ऐनिमल स्टडीज़ पढ़ीं और जानकारी मिली कि शहतूत की पत्तियां कोलेस्टरॉल मैनेजमेंट में भी इफ़ेक्टिव हैं.
एक ज़बरदस्त कंपाउंड पाया जाता है शहतूत के फलों और पत्तियों में, DNJ (1-डिऑक्सिनॉजिरीमायसिन) जो भोजन करने के बाद बढ़े शुगर को डाउन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. किलोभर के रिसर्च पेपर्स मिल जाएंगे, जो शहतूत की पत्तियों और फलों के ऐंटीडायबेटिक गुणों के क्लिनिकल प्रमाण देते हैं. जिन्हें मेरी जानकारी हल्की लग रही हो, उनसे एक किनारे में निपट सकता हूं, आ जाएं. अपनी जानकारियों को खंगाल और परखकर ही पटकता हूं, यह बात याद रहे.
अब करना क्या है? शहतूत के फल मार्च से मई तक पेड़ पर लदे रहते हैं, इन्हें ख़ूब खाएं. इनमें गुलाबी, बैगनी, काला और लाल रंग एंथोसायनिन पिगमेंट्स पाए जाने के कारण होता है. ये पिग्मेंट ऐंटीकैंसर होते हैं. डायबिटीज़ और फ़ैटी लिवर के लिए भी उत्तम हैं, और तो और हार्ट और हाई बीपी के पेशेंट्स भी इसे कन्ज़्यूम कर सकते हैं. जितना मन करे खाएं, सिर्फ़ तीन महीनों की ही तो मौज है जी. वैसे, पत्तियां पेड़ पर सालभर मिलती हैं, रोज 5-5 पत्तियों को साफ़ धोकर, कुचलकर रस निकालकर दोनों टाइम भोजन के बाद लें, क्या पता चमत्कारिक परिणाम मिलें. आज़माकर देखें, जमे तो ठीक वरना कौन-सा मैं खड़ा हूं डंडा लेकर.
भटक भटककर जानकारियां बटोरता हुआ आप तक दीपक आचार्य इस आलेख के ज़रिए आ रहा, सराह सकते हैं आप. करना कुछ ज़्यादा नहीं है. पढ़ें, साझा करें और हो सके तो शहतूत का एक पौधा अपने आसपास ज़रूर रोपें, कम दिखते हैं आजकल. कई बच्चों ने इसे आजतक देखा भी ना होगा, और यह दुर्भाग्य है!
तो इति श्री शहतूत कथा समाप्तम!
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट