बोधि प्रकाशन से हाल ही में आए अमृता सिन्हा के कविता संग्रह काल के करघे पर आखरों की कताई से ली गई इस कविता को पढ़ कर आपको ख़ुद ब ख़ुद समझ में आ जाएगा कि आज़ादी का स्वाद चखना, कितना सुखद और साहस से भरा होता है…
कतरे हुए पंख उसके
फिर उग आए हैं
अपनी चोंच की धार भी
करती जा रही है लगातार
तेज़… और तेज़
अब कोई जाल
कोई पिंजरा
उसे क़ैद नहीं कर पाएगा
बहेलिया भी ठगा सा रह जाएगा
क्योंकि
चिड़िया ने
चख लिया है स्वाद
आज़ादी का
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट