ऐन ऐक्शन हीरो में आयुष्मान एक सुपरस्टार, मानव खुराना बने हैं, जिसका अपना स्वैग है, अपनी अकड़ है, नखरे हैं. बस दिक़्क़त यही है कि अपनी फ़िल्मों में सौ तरह की परेशानियों से जूझते भली इमेज वाले आयुष्मान के ऊपर ये सुपरस्टार वाला स्वैग कुछ अटपटा लगा. फ़िल्म में रोचकता क़दम क़दम पर है, पर आंखें जो देख रही हैं, मन उसे मानने में बिलकुल साथ नहीं देता. और अंत तक इस कदर नाटकीय है कि आप कितने ही बड़े मूवी बफ़ क्यों न हों अंत का अनुमान नहीं लगा सकते. इस आकलन के साथ अंजू शर्मा का कहना है कि यह मूवी वन टाइम वॉच तो है.
फ़िल्म: ऐन ऐक्शन हीरो
सितारे: आयुष्मान खुराना, जयदीप अह्लावत, मलाइका अरोरा, अक्षय कुमार, नोरा फ़तेही और अन्य.
लेखक: नीरज यादव
निर्देशक: अनिरुद्ध अय्यर
रन टाइम: 130 मिनट
आयुष्मान खुराना की फ़िल्में मैं एक ख़ास उम्मीद के साथ देखने लगी हूं. हमारे दौर के अमोल पालेकर बनने से उनकी शुरुआत हुई, पर हर फ़िल्म में एक ख़ास विषय मिला. किसी मुंबइया हीरो जैसे तामझाम से परे के हमारे आसपास घूमते युवाओं जैसे, आयुष्मान, राजकुमार राव, जीतेन्द्र कुमार (जादूगर फ़ेम) जैसे युवा सत्तर अस्सी के दौर के उसी मीनिंगफुल सिनेमा का दौर लौटा लाए हैं, जहां हृषिकेश मुखर्जी, बासु चटर्जी, बासु भट्टाचार्य हमारे जीवन की कहानियों को रुपहले पर्दे पर उतार रहे थे. इरफ़ान के जाने के बाद जिस शून्य को भरने की ज़रूरत थी, वह वाक़ई भरने लगा है.
ऐन ऐक्शन हीरो, नाम ही विचित्र से विरोधाभास से भरा है कि आयुष्मान खुराना और ऐक्शन हीरो? दरअसल आयुष्मान फ़िल्म में एक सुपरस्टार, मानव खुराना बने हैं जो ऐक्शन हीरो के रूप में प्रसिद्ध है. उनका अपना स्वैग है, अपनी अकड़ है, नखरे हैं. बस दिक़्क़त यही है कि अपनी फ़िल्मों में सौ तरह की परेशानियों से जूझते भली इमेज वाले आयुष्मान के ऊपर ये सुपरस्टार वाला स्वैग कुछ अटपटा लगा.
फ़िल्म में मानव के हाथों ग़लती से स्थानीय नेता भूरे के भाई विक्की की हत्या हो जाती है. इसके बाद वह विदेश भाग जाता है. भूरा खाप पंचायतों वाले उस समाज से संबंध रखता है, जहां जान का बदला जान है. अपनी जान भले ही चली जाए पर नाक नीची नहीं होनी चाहिए तो अपनी प्रतिष्ठा के बोझ तले दबे भूरे पर मानव को मारकर बदला लेना इस क़दर हावी हो जाता है कि उसे जीने मरने का प्रश्न बना लेता है. भूरे के किरदार में जयदीप अहलावत ने अपना बेस्ट दिया है. हालांकि, थोड़ा टाइपकास्ट हो रहे हैं वे.
पूरी फ़िल्म में भागते मानव को ख़ुद को बेगुनाह भी साबित करना है और भूरे से जान भी बचानी है. फ़िल्मों के ऐक्शन हीरो को क़दम क़दम पर जीवन में ऐक्शन दिखाना पड़ता है. यहां तक तो फ़िल्म प्रभावित करती है. लेकिन उसके बाद फ़िल्म में दाऊद इब्राहिम के रेप्लिका बने मसूद अब्राहम काटकर नाम के एक डॉन का प्रवेश होता है और कहानी पूरी नाटकीय बन जाती है. रोचकता क़दम क़दम पर है, पर आंखें जो देख रही हैं, मन उसे मानने में बिलकुल साथ नहीं देता. एक के बाद एक घटनाएं घट रही हैं. बार बार आयुष्मान और जयदीप का टकराव होता है. अंत तक इस कदर नाटकीय है कि आप कितने ही बड़े मूवी बफ़ क्यों न हों अंत का अनुमान नहीं लगा सकते.
गंगूबाई की तरह, फ़िल्म की ख़ासियत भी आयुष्मान हैं और कमज़ोर कड़ी भी, क्योंकि उनकी द बॉय नेक्स्ट डोर इमेज उनकी इस नई पहचान पर हावी की पूरी कोशिश करती प्रतीत होती है. फ़िल्म की एक ख़ास बात है फ़िल्मी दुनिया के मीडिया की दुनिया को मुंहतोड़ जवाब देने की कोशिश. मीडिया का इतना मज़ाक बना है इस फ़िल्म में कि बॉयकॉट, बॉलीवुड ड्रग्स केस जैसी तमाम बातों के बड़े ही मज़ेदार अंदाज़ में जवाब देने की कोशिश की गई है. चीख़ते अर्नब और तार्किकता से विचार करते रवीश आपको बार बार दिखेंगे. किसी भी मामले को भुनाने की मीडिया की सारी कवायदें यहां बेपर्दा हैं और आम जनता पर बनती बिगड़ती छवियों का प्रभाव भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है.
ख़ैर वन टाइम वॉच है. कहानी को थोड़ा रीयलिस्टिक बनाया जाता तो फ़िल्म ज़रूर पसंद आती. अक्षय कुमार के कैमियो, बिना किसी हीरोइन और मलाइका और नोरा के आइटम नम्बर वाली इस फ़िल्म नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं. संगीत के बारे में यही कहना है कि शायद बॉलीवुड का संगीत वाला दौर बीत गया. आजकल पुराने गानों के रीमिक्स (आप जैसा कोई मेरी ज़िंदगी में आए) या पहले से प्रसिद्ध किसी ऐल्बम के गानों (जेड़ा नशा) से ही काम चलाया जा रहा है. नया आया भी तो उसमें से आधे गाने बाहर से उठाए हुए हैं. न केवल धुन, बल्कि जालमा कोका कोला पिला दे टाइप गाने जिनके बोल तक हूबहू रख दिए जाते हैं. दर्शकों को लौटाना है तो बॉलीवुड को इस पक्ष को नज़रंदाज़ करने से बचना चाहिए. दुआ है कई फ़िल्मों के कॉकटेल बनाने का यह दौर जल्दी बीते.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट