यह आंकड़ों का दौर है. सबकुछ आंकड़ों द्वारा नापा जा रहा है. ऐसे में कैसे सभी चीज़ों के मायने बदल गए हैं, बता रहे हैं कवि अरुण चन्द्र रॉय अपनी कविता ‘आंकड़े’ के माध्यम से.
एक
यह समय
शब्दों के
ख़ामोश होने का है
उनके अर्थ
ढूंढ़ने का नहीं
क्योंकि
इन दिनों
बोलते हैं
आंकड़े
दो
यह समय
भूखमरी का नहीं है
क्योंकि
आंकड़ों से
मापी जाती है
भूख की गहराई
और
आंकड़े दिनों-दिन
चढ़ते ही जा रहे हैं
विकास की ओर
तीन
यह समय
बच्चों के खेलने का नहीं है
न ही समय है
दिल खोलने का
क्योंकि
खोले जा रहे हैं
पिटारों के मुंह
रहने के लिए चुप
साथ ही खेला जा रहा है
आंकड़ों का जादुई खेल
चार
यह समय
प्रेमिका के रिझाने का नहीं है
ना ही उनसे
सम्मोहित होने का है
क्योंकि
रिझा रहा है
बाज़ार और आंकड़ों का
सम्मोहक गठबंधन
पांच
कैसा भी हो समय
नहीं बदलते
दिलों के आंकड़े
जो करते हैं
प्यार
कवि: अरुण चन्द्र रॉय
कविता संग्रह: खिड़की से समय
प्रकाशक: ज्योति पर्व प्रकाशन
Illustration: Pinterest