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अपरिचित: भावना शेखर की छोटी कहानी

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
July 19, 2021
in नई कहानियां, बुक क्लब
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अपरिचित: भावना शेखर की छोटी कहानी
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कभी-कभी कोई अपरिचित केवल अपनी मौजूदगी का एहसास देकर हमारे दिल के इतने क़रीब आ जाता है कि हम उससे गहरा जुड़ाव महसूस करने लगते हैं. और इस कहानी के इस अपरिचित से मिलकर आप भी मीठी मुस्कान के साथ गहरा जुड़ाव महसूस करने लगेंगे. इंसानियत के रिश्तों से सराबोर इस छोटी-सी कहानी को ज़रूर पढ़ें.

गुलाब की पंखुड़ी से होंठ, आराधना में लीन पुजारी-सी अधमुंदी आंखें, कोपल-सी नन्हीं उंगलियों को बड़े जतन से मुट्ठी में समेटे सूरज की पहली किरण की तरह अनायास सबसे नाता जोड़ती- हर्षिता. एक अपरिचित आंगन में यही नाम उसे मिला था कुछ अनजान लोगों से….

सत्ताईस जनवरी की गोधूलि बेला… मृदुला दी अपने बगीचे में टहल रही थीं, तभी चारदीवारी से सटे सड़क के कोने पर कुछ असामान्य-सी हलचल हुई. कुछ बच्चे… कुछ राहगीर… कुछ फुसफुसाहट… टोह लेने पर अस्फुट-से शब्द कानों में कौंध गए- “बच्चा है…!” वे बिजली की तेज़ी से लपकीं और देखकर स्तब्ध रह गईं. कूड़े-कचरे के ढेर में एक हरे रंग का पॉलिथीन, जिसका मुंह बंधा हुआ था, असामान्य ढंग से हिलडुल रहा है. आगे बढ़कर उसका बंधन ढीला किया तो ममता का सागर सीने में ठांठें मारने लगा.
हाय! एक जीवित मानव शिशु…

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कहां से आया, किसने फेंका जैसे विचार उन्हें छू भी ना सके. अपने भारी भरकम शरीर को फूल की तरह पैरों पर उठाए वे घर में लपकीं. धड़ाधड़ पांच-छह फ़ोन किए… पुराना बक्सा खोला. एक नरम तौलिया… पैंतीस बरस पुरानी बाबा की धोती, जिसे अपने अविवाहित पुत्रों की भावी संतान को लपेटने के लिए एक विरासत की तरह सहेज कर रखा था, आनन-फानन में निकाली… दो पल को घूर कर देखा, मोह विवेक पर हावी हो इसके पहले चर्र से फाड़ डाला.

बीस मिनट की अप्रत्याशित कार्रवाई में उनके घर पुलिस का काफ़िला, सागरिका मुखर्जी और श्रीमती बुबना जैसे कॉलोनी के कुछ ज़िम्मेदार नागरिक तुरत-फुरत जुट गए… शिशु को उठाकर सब घर में ले आए, एक पल बर्बाद किए बिना डॉक्टर द्वारा बच्ची… हां, वह एक बच्ची थी, को प्लेसेंटा से जुदा किया गया व ज़रूरी चिकित्सा की गई. डॉक्टर के कुशल हाथों की थपथपाहट से वह हाड़-मांस की पोटली पहली बार इंसानी क्रूरता पर चीत्कार कर उठी. पर उसकी चीत्कार वहां मौजूद लोगों को अद्भुत रोमांच और ख़ुशी से सराबोर कर गई. सबके हर्ष का स्रोत बनी इस नन्हीं काया का नाम रखा गया- हर्षिता.

ज़िम्मेदार नागरिकों ने नवजात बच्ची को हॉस्पिटल ले जाने का निर्णय किया. श्रीमती बुबना की कार में सागरिका मुखर्जी की बाहों में सोई शांत बच्ची चली जा रही थी… कुर्जी होली फ़ैमिली हॉस्पिटल की तरफ़. पुलिस की जीप एक विशिष्ट नागरिक की तरह कार को एस्कॉर्ट करती हर्षिता के नए मुक़ाम की ओर बढ़ती जा रही थी. कार के रुकते ही दरवाज़े खुले और चार जोड़ी पांव हॉस्पिटल के अहाते की ओर लपके. पुलिस की उपस्थिति में फ़ॉर्म भरा गया, बच्ची की माता श्रीमती सागरिका मुखर्जी… लिखते हुए जुड़वां बेटों की मां सागरिका दी एक अनोखे एहसास से भर गईं. इलाज के लिए बच्ची को सुरक्षित हाथों में सौंपकर थकावट, किन्तु सुकून से भरी चारों महिलाओं को ऐसा लग रहा था जैसे किसी तीर्थ यात्रा से लौट रही हों.

“मृदुला, सुबह नौ बजे तैयार रहना… इनक्यूबेटर सेल में साढ़े नौ से साढ़े दस बजे तक मिलने का समय है,” सागरिका दी ने याद दिलाया.

“हां सागरिका,” यह कहते हुए मृदुला दी की आंखें चमक उठीं.

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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