हमें दूसरों की कमियां तुरंत दिखाई दे जाती है और हम उस पर चर्चा भी करते हैं. लेकिन इस चर्चा से हमारा क्या भला होता है? कुछ भी नहीं. वहीं यदि हम अपनी कमियों को ढूंढ़ें, उन पर चर्चा करें, उन्हें सुधारें तो हम आगे बढ़ जाते हैं. जहां दूसरों की कमियां और बुराइयां ढूंढ़ना आसान काम है, वहीं अपनी कमियां ढूंढ़ना न सिर्फ़ मुश्क़िल है, बल्कि ऐसा करने में हमारा अहम् भी आड़े जाता है. इसी बात को बेहद आसान और तार्किक तरीक़े से समझा रहे हैं जानेमाने सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार. इस आलेख को ज़रूर पढ़िए और तर्क की कसौटी पर सही पाइए तो अमल में लाइए.
हिन्दुओं में फैले हुए अंधविश्वासों और कुरीतियों के बारे में लिखो तो तुरंत कुछ लोग आकर कहते हैं कि दम है तो मुसलमानों के बारे में लिख कर दिखाओ. वहीं मेरे कुछ मुस्लिम दोस्त मुसलमानों की कुरीतियों के बारे में लिखते हैं तो उन्हें मुसलमान आकर इसी तरह से बुरा-भला कहते हैं.
देखिए, आपको सिर्फ़ अपने समुदाय की कमियों और कुरीतियों पर ही बोलने का अधिकार है. दूसरे धर्म या समुदाय के ख़िलाफ़ लिखने, बोलने का आपको कोई अधिकार नहीं है. हांलाकि आपको यही अच्छा लगता है कि आप दूसरे धर्म की बुराई खोजें और उन्हें बुरा भला कहें, क्योंकि इससे आपका झूठा घमंड और ज़्यादा फूल जाता है कि देखो मैं कितना महान हूं.
मान लीजिए जब आपके समुदाय का ही व्यक्ति आपके समुदाय की कुरीतियों के बारे में कहता है तो वह आपका सबसे बड़ा दोस्त है. आपके दुश्मन दूसरे धर्म के लोग नहीं हैं, बल्कि आपका अज्ञान, ग़रीबी और पिछड़ापन आपका सबसे बड़ा दुश्मन है. अगर हिन्दू ख़त्म होंगे तो वह ग़रीबी, अज्ञान और अंधविश्वास की वजह से ख़त्म होंगे. मुसलमान हिन्दुओं का कुछ नहीं बिगाड़ सकते. वहीं यदि मुसलमान डूबेंगे तो अपनी ज़हालत और ग़रीबी की वजह से, हिन्दू लोग मुसलमानों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते.
डार्विन का सिद्धांत है कि दुनिया में वही प्रजातियां बचीं, जिन्होनें बदलते वक़्त के साथ अपने को ढाल लिया. जो नहीं बदल पाए, वह जीव मिट गए. आप अगर आज के हिसाब से नहीं बदलते तो आप मिट जाएंगे. संसार रोज़ बदल रहा है, आपको बदलना ही पड़ेगा. पर आपकी ज़िद है कि आप और भी ज़्यादा पीछे जाकर पुराना धर्म निकाल कर उस पर चलेंगे. आप पुराने ढंग का खाना, पुराने ढंग के कपड़े, पुराने रीति रिवाज़, महिलाओं की गुलामी और बच्चों को दबा कर रखने की ज़िद पर अड़े हुए हैं. जो भी पार्टी आपकी इन मूर्खता से भरी ज़िद का समर्थन करती है, उसे पोषित करती है आप उसे सत्ता दे देते हैं इसलिए आपकी ग़रीबी, ज़हालत बीमारी मिट ही नहीं रही है.
सच तो यह है कि आपका मज़हबी पिछड़ापन आपका दुश्मन बन चुका है. आपको कुछ कहो तो आपको लगता है कि अगर आपने यह मान लिया कि आपके समुदाय में कोई कमज़ोरी है तो इससे आपका दुश्मन धर्म जीत जाएगा. हिन्दू सोचता है कि मैं क्यों मानूं कि मुझमें कोई कमी है और मुसलमान भी यही सोचता है कि मैं ख़ुद को क्यों गलत मानूं? बस, इस डर के कारण दोनों अपनी बेवकूफ़ियों की जी जान से हिफ़ाज़त कर रहे हैं. सोच कर देखिए कहीं आप भी तो ऐसा नहीं कर रहे हैं?
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट, modernghana.com