हाल ही में वरिष्ठ अभिनेत्री आशा पारेख को दादा साहेब फाल्के लाइफ़ टाइम अचीवमेंट सम्मान की दिए जाने की घोषणा की गई है. वे यह सम्मान पाने वाली सातवीं महिला हैं और 37 वर्षों बाद किसी अभिनेत्री को यह पुरस्कार मिल रहा है. इस मौक़े पर उन्हें शुभकामनाएं देते हुए लेखिका अंजू शर्मा ने ऐसे अवसर पर होने वाली किस्म-किस्म की तुलनाओं का भी उल्लेख किया है और वे यह भी बता रही हैं कि क्यों उन्हें लगता है कि आशा पारेख को यह पुरस्कार मिलना ही चाहिए था.
वरिष्ठ अभिनेत्री आशा पारेख को दादा साहेब फाल्के लाइफ़ टाइम अचीवमेंट सम्मान की घोषणा अपने आप में एक ख़ुशख़बरी है, क्योंकि यह अवॉर्ड पाने वाली वे सातवीं महिला हैं. यही नहीं, 37 वर्षों बाद किसी अभिनेत्री को यह पुरस्कार मिला है. लेकिन इसके बाद से ही यह बहस शुरू हो गई है कि वरिष्ठ अभिनेत्री वहीदा रहमान को भी यह पुरस्कार मिलना चाहिए. वे कहीं अधिक डिज़र्व करती थीं. इसमें कोई दो राय नहीं कि वहीदा रहमान बिल्कुल यह पुरस्कार डिज़र्व करती हैं, बल्कि उन्हें तो ये बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था.
हिंदी सिनेमा के पितामह के नाम पर दिया जाने वाला ये सम्मान कोई अपवाद नहीं. किसी योग्य व्यक्ति को भी कोई सम्मान मिले तो कोई न कोई अधिक योग्य छूट जाने की कसक के साथ याद न आए ऐसा संभव ही नहीं.
बहरहाल अस्सी वर्ष से एक क़दम दूर खड़ी आशा जी न केवल अपनी अभिनय की पारी के साथ इसे डिज़र्व करती हैं, बल्कि कुछ और कामों के लिए भी उनकी सक्रियता बहुत प्रेरित करती है.
आशा जी सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष (1994-2000) रह चुकी हैं और उनकी फ़िल्म निर्माण कम्पनी ‘आकृति’ के बैनर तले वे टेली क्रांति के शुरुआती वर्षों में नृत्य पर आधारित एक अपनी ही तरह का नायाब शो ‘बाजे पायल’ प्रोड्यूस और डायरेक्ट कर चुकी हैं, जिसमें उन्होंने नृत्य से जुड़े लोगों के रोचक साक्षात्कार प्रस्तुत किए, पर वे स्वयं पर्दे के पीछे ही रहीं. साथ ही कोरा कागज़, पलाश के फूल और दाल में काला (कॉमेडी) जैसे कई धारावाहिकों का निर्माण इस बैनर तले हुआ है. इसके अतिरिक्त वे एक गुजराती फ़िल्म भी निर्देशित कर चुकी हैं. वर्ष 2008 में वे टीवी पर शो भी जज कर चुकी हैं.
एक अन्य उल्लेखनीय बात यह है कि नासिर हुसैन से प्रेम के कारण आजीवन अविवाहित रहने वाली आशा पारेख ने अपनी जीवनभर की कमाई लगा कर और फ़िल्मी मित्रों के सहयोग से मुम्बई में हाशिये के लोगों के लिये आशा पारेख हॉस्पिटल का निर्माण किया. उन्होंने कारा भवन के नाम से एक डांस अकैडमी भी शुरू की है.
जुबली गर्ल या द हिट गर्ल, जो कि उनकी ऑटोबायोग्राफ़ी (सहलेखक ख़ालिद मोहम्मद) का नाम भी है, के नाम से मशहूर रही आशा जी ने ढेर सारी हिट फ़िल्मों में काम किया. अकेले वर्ष 1971 में ही उनकी छह फ़िल्में रिलीज़ हुईं और सब एक से बढ़कर एक. लोकप्रिय माध्यम की एक समय की सफलतम हीरोइन मानी जाने वाली आशा जी ने गुजराती, पंजाबी और कन्नड़ भाषा की फ़िल्मों में भी काम किया. आशा जी को दादा साहेब फाल्के लाइफ़ टाइम अचीवमेंट की हार्दिक बधाई.
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