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ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब कविताएं

ऐ मेरे वतन के लोगों: कवि प्रदीप की कविता

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
August 15, 2022
in कविताएं, बुक क्लब
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कवि प्रदीप का लिखा गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ हमें एक ही साथ भावुक करता है और प्रेरणा भी देता है. शहीदों के बलिदान को याद दिलाता है तो उनके बलिदान को व्यर्थ न जाने देने का वादा भी कराता है. स्वर कोकिला लता मंगेशकर की आवाज़ में यह गीत हर भारतवासी सुन चुका है. स्वतंत्रता दिवस की 75वीं सालगिरह पर आइए, इस गीत को एक बार दोबारा पढ़ लेते हैं.

ऐ मेरे वतन के लोगों
तुम ख़ूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर
वीरों ने हैं प्राण गंवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो
जो लौट के घर न आए

ऐ मेरे वतन के लोगों
ज़रा आंख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी

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September 24, 2024

जब घायल हुआ हिमालय
ख़तरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी सांस लड़े वो
फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा
सो गए अमर बलिदानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी

जब देश में थी दीवाली
वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में
वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो अपने
थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी

कोई सिख कोई जाट मराठा
कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला
हर वीर था भारतवासी
जो ख़ून गिरा पर्वत पर
वो ख़ून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी

थी ख़ून से लथ-पथ काया
फिर भी बन्दूक उठाके
दस-दस को एक ने मारा
फिर गिर गए होश गंवा के

जब अन्त-समय आया तो
कह गए के अब मरते हैं
ख़ुश रहना देश के प्यारों
अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने
क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी

तुम भूल न जाओ उनको
इसलिए कही ये कहानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी

Illustration: Pinterest

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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