जब इस समय दुनिया में बहुत कुछ बचाने का प्रयास चल रहा है, कवयित्री अनुराधा सिंह की मानें तो प्रेम जैसी दुर्लभ होती चीज़ को बचाना भी उतना ही ज़रूरी हो गया है. कविता संग्रह ‘ईश्वर नहीं नींद चाहिए’ की एक और कविता.
मैं कहती हूं
बचा लो यह प्रेम जो दुर्लभ है
इस्पात और कंक्रीट से बनी इस दुनिया में
तुम बचा लेते हो अहम् का फौलाद
दो कांच आंखों में एक पत्थर सीने में
मैं कहती हूं बचा लो
हमारे साथ का अर्धउन्मीलित बिम्ब
कांपता मेरी आंखों की बेसुध झील में
तुम बचा लेते हो दर्द की हद पर सर धुनता मेरा पोर्ट्रेट
चाहती हूं कि अपने मौन के नीचे पिसता
वह नाज़ुक सोनजुही शब्द बचा लो
जो महमहाता हो प्रेम
तुम सिर्फ़ बचा पाते हो अनन्त प्रतीक्षा मेरे लिए
दुनिया में जब बहुत लोग बहुत कुछ
बचाने की कोशिश में हैं
मुझे लग रहा है तुम्हारी नीयत ही नहीं
इस लुप्तप्राय प्रेम को बचाने की
जिसे कर पा रही है
पृथ्वी की एक दुर्लभ प्रजाति
बस यदा कदा
कवयित्री: अनुराधा सिंह (ईमेल: [email protected])
कविता संग्रह: ईश्वर नहीं नींद चाहिए
प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ
Illustration: Pinterest