जम्मू-कश्मीर के साम्बा में जन्मे, पले-बढ़े कमल जीत चौधरी वर्ष 2007 से लगातार लेखन में सक्रिय रहे हैं. उनकी यह छोटी-सी कविता आज के समय को बारीक़ी से बयां करती है. जब समाज अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक में बंट रहा है, तो यह कविता हमारी सोच को 360 डिग्री घुमा देती है.
तुम कहते हो
जहां हिन्दू बहुसंख्यक थे
मुस्लिम लूटे
मस्ज़िद-मक़बरे टूटे
सलमा नूरां के भाग फूटे
मैं कहता हूं
जहां मुस्लिम बहुसंख्यक थे
हिन्दू लूटे
मंदिर शिवाले टूटे
सीता गीता के भाग फूटे
…
…
…
यह सच है
अपने अपने दड़बों में
हम ताक़त दिखा गए
पर खेत बाज़ार सड़क फ़ैक्टरी
जहां हम दोनों बहुसंख्यक थे
अल्प से मात खा गए…
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