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Home बुक क्लब कविताएं

बूढ़ा बालमन: मीनाक्षी विजयवर्गीय की कविता

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
November 20, 2021
in कविताएं, बुक क्लब
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बूढ़ा बालमन: मीनाक्षी विजयवर्गीय की कविता
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हमारे यहां कहावत है ‘बच्चे-बूढ़े एक जैसे होते हैं.’ दुनिया में आए नए जीव ‘बच्चों’ और दुनिया में कुछ दिनों के मेहमान रह गए ‘बूढ़ों’ के बीच समानता तलाशती और दोनों के साथ हमारे व्यवहार को कसौटी पर कसती कवयित्री मीनाक्षी विजयवर्गीय की यह कविता मन के किसी कोने को भिगो जाती है.

बूढ़े मन की बेचैनी कौन समझ पाता है
समझदारी की उम्मीदें रखने वालों
उनका तो बाल मन हो जाता है

बच्चे को सब सुनना चाहते
पर बूढ़े कह तक नहीं पाते हैं
बच्चों के लिए नया पालना,
बूढ़ों को कोना थमा दिया जाता है

इन्हें भीपढ़ें

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बच्चों को तरह-तरह के स्वाद चखाते हैं,
बूढ़े तो बीमारी के नाम पर टोके जाते हैं
उंगली पकड़कर चलना सिखाने वाला
इक लाठी के सहारे रह जाता है

तो क्यों ना कोशिश करें एक बार
समय को दोहराने की
जितनी चिंता नए जीव की
उतनी ही करें कुछ दिनों के मेहमानों की

कब प्राण पखेरू हो जाए उनके
हो जाएगा ख़ाली कोना भी
बूढ़ों की भी करें देखरेख
नन्हें मेहमानों सी

क्यों ना ख़्वाहिशें जानकर
पूरी कर दें उनकी भी
देकर छोटी-छोटी ख़ुशियां उनको
लें लें आशीष हज़ारों हम सब भी
फिर एक बार बच्चों-सी मुस्कान
बिखरे उस बूढ़े मुख पर
जिसकी कोशिशों का रंग दिखाती,
हमारे घर की छतें और दीवारें भी

आख़िर बूढ़ा मन
बालमन हो जाता है

Illustration: Pinterest

Tags: Aaj ki KavitaHindi KavitaHindi PoemKavitaMeenakshi VijayvargiyaMeenakshi Vijayvargiya Poem Boodha BaalmanMeenakshi Vijayvargiya Poetryआज की कविताकविताबूढ़ा बालमनमीनाक्षी विजयवर्गीयमीनाक्षी विजयवर्गीय की कविताहिंदी कविता
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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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