हाल के समय में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सड़कों पर तेज़ी से दौड़ रहे, तोड़-फोड़ कर रहे और सुशासन के नए नवेले प्रतीक बुलडोज़र पर वरिष्ठ कवि राजेश जोशी की सटीक टिप्पणी.
तुमने कभी कोई बुलडोज़र देखा है
वो बिल्कुल एक सनकी शासक के दिमाग़ की तरह होता है
आगा पीछा कुछ नहीं सोचता,
उसे बस एक हुक़्म की ज़रूरत होती है
और वह तोड़-फोड़ शुरू कर देता है
सनकी शासक कल्पना में कुचलता है
जैसे विरोध में उठ रही आवाज़ को
बुलडोज़र भी साबुत नहीं छोड़ता किसी भी चीज़ को
सनकी शासक बताना भूल जाता है
कि बुलडोज़र को क्या तोड़ना है
और कब रुक जाना है
सनकी शासक ख़्वाबों की दुनिया से जब बाहर आता है
मुल्क़ मलबे का ढेर बन चुका होता है
सनकी शासक मलबे के ढेर पर खड़े होने की कोशिश करता है
पर उसकी रीढ़ टूट चुकी है
वह ज़ोर-ज़ोर से हंसना चाहता है
पर बुलडोज़र ने तोड़ डाले है उसके भी सारे दांत
बुलडोज़र किसी को नहीं पहचानता है
बुलडोज़र सब कुछ तोड़कर
बगल में खड़ा है
अगले आदेश के लिए !
Illustration: Pinterest