हल्दी का इस्तेमाल तो हम सभी करते हैं, लेकिन क्या आप इसका इस्तेमाल इस तरह करते हैं कि इसके गुण आपके शरीर के भीतर समाहित हो जाएं? अधिकतर लोग ऐसा नहीं करते और हल्दी को रोज़ाना खानपान में शामिल करने के बावजूद इस मसाले के चिकित्स्कीय गुणों का पूरा फ़ायदा नहीं उठा पाते. तो हल्दी का इस्तेमाल कैसे करें? वैसे, जैसे कि डॉक्टर दीपक आचार्य आपको यहां बता रहे हैं…
हल्दी को भारतीय संस्कृति और रसोई का हिस्सा बने 3500 से ज़्यादा वर्ष हो गए होंगे और अब तक हल्दी भारतीय संस्कृति और रसोई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है. बचपन से लेकर अब तक, सर्दी-खांसी हो, गले में खराश हो या शरीर के किसी हिस्से में सूजन, चोट या दर्द, घरेलू इलाज के लिए मेरी मां का सबसे फ़ेवरेट आइटम हल्दी रहा है. हल्दी सिर्फ़ मेरी मां के लिए नहीं, भारत की हर मां के लिए प्राथमिक उपचार के लिए सबसे आसानी से इस्तेमाल में लाए जाने वाली चीज़ है.
वेद पुराणों से लेकर आयुर्वेद और अब मॉडर्न साइंस में भी हल्दी चर्चा में बनी रहती है. ऐसा क्या है हल्दी में कि वनस्पतियों के गुणधर्मों की बात की जाए तो सबसे ज़्यादा भरोसा हल्दी पर आता है? हल्दी एक ग़ज़ब की औषधि है. भारतीय पारंपरिक हर्बल ज्ञान तो हल्दी पर एकतरफ़ा भरोसा करता रहा है, आदिकाल से. और इसी भरोसे को परखने के लिए मॉडर्न साइंस ने भी 4000 से ज़्यादा क्लिनिकल स्टडीज़ कर मारीं और उसे अच्छी तरह से हमारे देश का ज्ञान और दम समझ आ चुका है.
हल्दी के इस्तेमाल को लेकर यह समझें
हल्दी के बारे में एक-दो बातें हैं, जिन्हें समझना ज़रूरी है:
1. हल्दी पानी में पूरी तरह से घुलनशील नहीं है
2. हमारा शरीर भीतर से हल्दी को आसानी से पकड़ नहीं पाता है, विज्ञान की भाषा में कहूं तो हल्दी की बायोअवैलेबिलिटी (Bioavailability) बहुत कम है.
हम ज़्यादातर भारतीयों (मैं सभी की बात नहीं कर रहा) द्वारा हल्दी के दैनिक इस्तेमाल करने की प्रक्रिया में मुझे एक दो खामियां नज़र आती हैं. ज़्यादातर हल्दी का इस्तेमाल सब्ज़ियों/ दालों/ व्यजंनों की रंगत बढ़ाने को ध्यान में रखकर किया जाता है. हल्दी का इस्तेमाल करते वक़्त बहुत कम लोग इस बात को सोचते हैं कि इस हल्दी की वजह से सेहत दुरुस्त होने वाली है. हल्दी एंटीऑक्सिडेंट्स से भरपूर होती है, एंटीइन्फ़्लेमटॉरी भी ज़बर्दस्त है और पचासों समस्याओं में इसे बतौर औषधि उपयोग में लाया जाता है, किसी दिन डिटेल में चर्चा करेंगे इस पर.
हल्दी के इस्तेमाल करने के पारंपरिक तौर तरीक़े अब बदल चुके हैं, अब इसे फ़्लेवर और कलर के हिसाब से ही ज़्यादा उपयोग में लाया जाता है लेकिन सामान्य तौर तरीक़ों में थोड़ा बदलाव करें तो वही हल्दी फ़्लेवर और कलर के अलावा अपने गुणों को आपके शरीर में सौंपने में कसर नहीं छोड़ेगी.
कैसे करें इसका इस्तेमाल
हल्दी आपके भीतर सही तरीक़े से पहुंचे इसलिए हमेशा ध्यान रखें कि सब्ज़ी या दाल फ्राय करते समय जब कड़ाही में तेल या घी डालें, सबसे पहले आवश्यकतानुसार हल्दी डालकर उसे तेल/ घी में घोल लें, फिर फ़्राय करने का प्रोसेस शुरू करें. तेल, घी या फ़ैट्स हल्दी को शरीर के भीतर सही जगह पहुंचाने वाले ड्राइवर की तरह काम करते हैं.
अब मेरी नानी की बात भी पढ़ें… मेरी नानी तो कड़ाही में तेल डालकर मसालों, प्याज वगैरह को पहले फ्राय कर लेती थीं. दाल, रसम, सांबार, सब्ज़ी वगैरह पका लेती थीं और सबसे आख़िरी में आधा चम्मच कच्चे खाने के तेल में इतनी ही हल्दी को मिक्स करके पके हुए आइटम में मिला दिया करती थीं… इसके पीछे लॉजिक था, सॉलिड लॉजिक…
वैसे एक व्यक्ति दिनभर में आराम से 5-8 ग्राम (2 चम्मच) तक हल्दी कंज़्यूम कर सकता है, और इतना करना भी चाहिए. कभी चाय, दूध पीने का मन न हो तो एक ग्लास पानी में आधा चम्मच (2 ग्राम) हल्दी पाउडर डालिए, 2 चुटकी काली मिर्च का पाउडर और पी लीजिए. ये बेहतरीन टॉनिक भी है. अब काली मिर्च डालने की जुगत भी ये है कि काली मिर्च हल्दी की बाहों में बाहें डाल लेती है और हमारे शरीर के उन हिस्सों तक पहुंचा आती है, जहां हल्दी की ज़रूरत हो. काली मिर्च दरअसल हल्दी की bioavailability को बढ़ा देती है. काली मिर्च की वजह से हल्दी की bioavailibility 2000 गुना तक बढ़ जाती है, ये बिल्कुल सच बात है, प्रमाणित भी. इसके अलावा पानी में काफी देर उबालकर भी हल्दी की घुलनशीलता थोड़ी बढ़ाई जा सकती है.
पुरानी बातें याद कीजिए
अब ज़रा याद कीजिए अपनी मां या नानी या दादी को… आपको जब भी सर्दी-खांसी हुई, रात को सोने से पहले हल्दी वाला दूध या दूध में हल्दी और कुटी हुई कालीमिर्च डालकर पिलाया जाता था न… क्यों? दूध में फ़ैट होना, हल्दी का फ़ैट में घुलना और काली मिर्च का ड्राइवर की भूमिका निभाना, उन्हें किसने सिखाया…? तो देख लीजिए प्रमाण सहित समझा दिया आपको कि दम है हमारे देश के ज्ञान में!
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट, myhdiet.com