मनुष्यता को गति देनेवाले शुरुआती वाहनों में साइकिल की भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता. वरिष्ठ कवि कृष्ण कल्पित ने ‘साइकिल की कहानी’ में इंसान और साइकिल के रिश्ते को बयां किया है.
यह मनुष्य से भी अधिक मानवीय है
चलती हुई कोई उम्मीद
ठहरी हुई एक संभावना
उड़ती हुई पतंग की अंगुलियों की ठुमक
और पांवों में चपलता का अलिखित आख्यान
इसे इसकी छाया से भी पहचाना जा सकता है
मूषक पर गणेश
बैल पर शिवजी
सिंह पर दुर्गा
मयूर पर कार्तिक
हाथी पर इन्द्र
हंस पर सरस्वती
उल्लू पर लक्ष्मी
भैंसे पर यमराज
बीएमडब्ल्यू पर महाजन
विमान पर राष्ट्राध्यक्ष
गधे पर मुल्ला नसरूद्दीन
रेलगाड़ी पर भीड़
लेकिन साइकिल पर हर बार कोई मनुष्य
कोई हारा-थका मज़दूर
स्कूल जाता बच्चा
या फिर पटना की सड़कों पर
जनकवि लालधुआं की पत्नी
कैरियर पर सिलाई मशीन बांधे हुए
साइकिल अकेली सवारी है दुनिया में
जो किसी देवता की नहीं है
साइकिल का कोई शोकगीत नहीं हो सकता
वह जीवन की तरफ़ दौड़ती हुई अकेली मशीन है
मनुष्य और मशीन की यह सबसे प्राचीन दोस्ती है
जिसे कविता में लिखा
पंजाबी कवि अमरजीत चंदन ने
और सिनेमा में दिखाया
वित्तोरिया देसीका ने ’बाइसिकल थीफ़’ में
ग़रीबी यातना और अपमान की जिन
अंधेरी और तंग गलियों में
मनुष्यता रहती है
वहां तक सिर्फ़ साइकिल जा सकती है
घटना-स्थल पर पाई गई सिर्फ़ इस बात से
हम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते कि
साइकिल का इस्तेमाल मनुष्यता के विरोध में किया गया
जब लाशें उठा ली गई थीं
और बारूद का धुआं छट गया था तब
साइकिल के दो चमकते हुए चक्के
सड़क के बीचों-बीच पड़े हुए थे
घंटी बहुत दूर जा गिरी थी
और वह टिफ़िन कैरियर
जिसमें रोटी की जगह बम रखा हुआ था
कहीं खलाओं में खो गया था
एक साइकिल की कहानी
अंततः एक मनुष्य की कहानी है!
Illustration: Pinterest