कहते हैं, कविताएं चित्र होती हैं. दीपावली के कुछ चित्रों के बारे में ख़ुद कवि अरुण चन्द्र रॉय बताते हुए कहते हैं,‘‘दीपावली आ गई है. मेरे बेटे के उम्र के सैकड़ों बच्चे काम करते हुए दिख रहे हैं. कोई कबाड़ बीन रहा है, तो कोई मिठाई की दुकान पर लगा है. कोई मेहंदी लगा रहा है, तो कोई रेड लाइट पर खिलौने व मूर्तियां बेच रहा है. शॉपिंग माल से लेकर घरों तक रौशनी का अम्बार है, लेकिन इसके पीछे गहन अन्धकार भी है. अंधेरों के बाद रौशनी आती है लेकिन एक हिस्से में जितनी रौशनी बढ़ रही है दूसरे हिस्से में उतना है अन्धकार भी पसर रहा है. पांच छः साल पहले लिखी कविता वैसे ही मुंह चिढ़ा रही है.’’
1.
महानगर की
लालबत्ती पर
कटोरे में
लक्ष्मी गणेश की मूर्ति लिए
एक क़रीब सात साल का लड़का
ठोक रहा है बंद शीशा
मना रहा है दीपावली
2.
दीपावली पर
हार्दिक शुभकामना के कार्ड
छापते छापते
सोया नहीं है वह
पिछले कई रातों से
आंखें दीप सी चमक रही हैं
ओवर टाइम के रुपयों को देख
आज सोएगा मन भर
पटाखों के शोर के बीच
मनाएगा दीपावली
3.
मिठाई के डब्बे पर
चढ़ाते चढ़ाते
चमकीली प्लास्टिक की पन्नी
आंखों की चमक भी
हो गई है प्लास्टिक सी
अब नहीं देखता है वह
सामने खड़े ग्राहक की ओर
वह तो मनाता है दीपावली
तीज, दशहरा, करवाचौथ को भी
4.
गोबर से लीपे हुए आंगन में
मां करती है इन्तज़ार
दीप जलते जलते
बुझ जाता है
आधी रात के बाद
वर्षों से कई माएं मनाती हैं
ऐसे ही दीपावली
Illustration: Pinterest