जो जैसा दिखता है वह होता नहीं, दुनिया के कई-कई चेहरे और चरित्र हैं. राहत इंदौरी की यह ग़ज़ल दुनिया के इसी चाल, चरित्र और चेहरे को बेपर्दा कर रही है.
दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चेहरों पे दोहरी नका़ब रखते हैं
हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं
बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आश्ना भी नहीं
इसी में ख़ुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं
ये मैकदा है, वो मस्जिद है, वो है बुत-खाना
कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं
हमारे शहर के मंजर न देख पाएंगे
यहां के लोग तो आंखों में ख़्वाब रखते हैं
Illustration: Pinterest