आम आदमी की ज़िंदगी को फ़ंटासी से भरे गीतों के बजाय उसी के जीवन के शब्दों में ढालने का काम करते थे कवि कुंवर बेचैन. इसी मिज़ाज की एक कविता.
नींदें तो
रातों से लंबी
दिन से लंबा ख़ालीपन
अब क्या होगा मेरे मन?
मन की मीन
नयन की नौका
जब भी चाहे
बीती-अनबीती बातों में
डूबे-उतराए
निष्ठुर तट ने
तोड़ दिए हैं
बर्तुल लहरों के कंगन
अब क्या होगा मेरे मन?
जितनी सांसें
रहन रखी थीं
भोले जीवन ने
एक-एक कर
छीनीं सारी
अश्रु-महाजन ने
लुटा हाट में
इस दुनिया की,
प्राणों का मधुमय कंचन
अब क्या होगा मेरे मन
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