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कैसा अनुभव रहा बिमल मित्र की किताब ‘यश का मूल्य’ पढ़ने का

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
March 22, 2021
in बुक क्लब, समीक्षा
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कैसा अनुभव रहा बिमल मित्र की किताब ‘यश का मूल्य’ पढ़ने का
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बांग्ला उपन्यासकार बिमल मित्र उन लेखकों में रहे, जिनकी कई कृतियों पर फ़िल्में बनाई गई हैं और कई चर्चित टीवी सीरियल्स भी. हालांकि उनकी ज़्यादातर पुस्तकें हिंदी में भी अनूदित हैं, पर हिंदी का बड़ा पाठक वर्ग इस लेखक की कृतियों से अनजान है. गुरुदत्त की मशहूर फ़िल्म साहेब बीवी और ग़ुलाम के लेखक बिमल मित्र की पुस्तक यश का मूल्य हमारे पाठक आलोक निगम जी ने पढ़ी. प्रस्तुत है उस किताब के बारे में उनकी राय.

पुस्तक: यश का मूल्य
लेखक: बिमल मित्र
अनुवाद: सुशील गुप्ता
प्रकाशक: राजपाल ऐंड सन्स

पाठक: आलोक निगम

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आज की किताब इस मायने में ख़ास है कि इसने हमें बिमल मित्र जी का मुरीद बना दिया. किताब है ‘यश का मूल्य’, जो फ़िल्म अभिनेता गुरुदत्त के साथ बिताए बिमल मित्र के वक़्त का संस्मरण है. इस किताब के पढ़ने की कहानी भी अलग है. हमने बिमल मित्र जी का नाम पहले सुना था, पर कभी उन्हें पढ़ा नहीं था. ये नाम इसलिए भी दिमाग़ में था क्योंकि कभी एक धारावाहिक आता था ‘इंतज़ार और सही’, जो हमें बहुत पसंद था. उसके शुरुआत में लिखा होता था ‘बिमल मित्र के उपन्यास पर आधारित’. वो नाम इतनी जल्दी आता था और इतने डिज़ाइनर अक्षरों में लिखा होता था कि हम कभी पढ़ नहीं पाए (बाद में ढूंढ़ने पर पता चला कि वह उपन्यास है एइ नरदेह). तब से ही उनको पढ़ने की इच्छा मन में थी.
क़रीब दो साल पहले की बात है लाइब्रेरी में किताबें देखते हुए एक दिन अचानक ‘यश का मूल्य’ पर नज़र पड़ गई और कौतूहल वश उठा ली. थोड़ा पढ़ी तो फिर वापस नहीं रख पाए. ये पुस्तक उस समय की घटनाओं पर आधारित है जब गुरुदत्त ने बिमल मित्र को ‘साहब बीबी और ग़ुलाम’ की स्क्रिप्ट लिखने के लिए बंबई बुलाया था. गुरुदत्त ने वहां पर उन्हें मिथिलेश शर्मा नामक गीतकार से भी मिलवाया. इस पुस्तक में बिमल मित्र जी ने अपने, मिथिलेश शर्मा और गुरुदत्त की सफलता और उसके लिए चुकाई गई क़ीमतों का विश्लेषण किया है.
इस किताब का ऐसा प्रभाव पड़ा की उसके बाद बिमल मित्र जी की लगभग 30-35 किताबें पढ़ डालीं. हालांकि, अभी ‘ख़रीदी कौड़ियों के मोल’, ‘बेगम मेरी बिस्वास’ और ‘सब झूठ है’ जैसी किताबें पढ़ने को रह ही गई हैं. जितना सोचो उतना पढ़ना कहां हो पता है. ख़ैर, कभी तो पढ़ ही लेंगे.

दो पसंदीदा उद्धरण इस पुस्तक से
1
“हालांकि सभी लोग सुख के पीछे ही दौड़-भाग रहे हैं. किसी को लगता है, रुपयों में ही सारा सुख है, किसी को ख्याति में ही सुख संचित लगता है. किसी को प्यार में, किसी को त्याग में ही सुख नज़र आता है. किसी का ख़्याल है पाने में ही सुख है, कोई देने को ही सुख मानता है.
लेकिन जब चाहने-पाने का दौर ख़त्म हो जाता है, आदमी भयंकर अचरज में पड़ जाता है.वह महसूस करता है, इतने दिनों जिसके पीछे वह दौड़ता फिरा, दरअसल वह मृग मरीचिका थी. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, लौटने की कोई राह नहीं होती…”

2
मैंने सवाल किया,“तुमने साहब बीबी और ग़ुलाम फ़िल्म पूरी कर ली न, कैसी लगी?”
गुरुदत्त ने गंभीर मुद्रा में जवाब दिया,“ मैं हार गया…”
थोड़ा ठहरकर गुरुदत्त ने सवाल किया,“आप भी तो ख़रीदी कौड़ियों के मोल पूरी कर चुके. क्या लगा?”
“मैं हार गया…”
गुरुदत्त ने फिर सवाल किया,“क्यों हार गए?”
जवाब देने के बजाए मैंने भी पलटकर सवाल किया,‘‘मिथिलेश शर्मा क्यों हार गए? तुम क्यों हार गए?’’
“मैं…? मुझे तो पब्लिक का नज़रिया सामने रखकर फ़िल्म बनानी पड़ती है, इसीलिए हार गया. लेकिन, आपके साथ तो ऐसा नहीं. आप क्यों हार गए?”
मैंने जवाब दिया,“मेरे हारने की वजह एक ही है. समूचे एशिया भर में ऐसा भारी-भरकम उपन्यास किसी ने नहीं लिखा, तभी तो बाक़ी तमाम समकालीन लेखक मुझ पर हमलावर बन गए. बेचारे संपादक पर ही टूट पड़े. उन्होने संपादक का ख़ून कर डालने तक की धमकी दे डाली. बिमल मित्र को इतना वृहद उपन्यास लिखने का मौक़ा क्यों दिया गया? तमाम लेखक मेरी जान के दुश्मन बन गए. अगर मुझे महीने भर का वक़्त और दिया जाता, तो मुमक़िन है, मैं जीत जाता.
‘‘अंग्रेज़ी में मशहूर कहावत है-दुनिया पूर्ण सच्चाई को बर्दाश्त नहीं करती. मेरे साथ भी वही हुआ. मुझे भी कोई बर्दाश्त नहीं कर पाया. पता है, वाल्टेयर ने लिखा है-साहित्य अभ्यास का एकमात्र पुरस्कार है, किसी भी असफलता पर अनादर; सफलता पर नफ़रत. यानी तुम अगर कूड़ा लिखते हो, तो तुम्हें अवज्ञा देंगे; अगर अच्छा लिखते हो तुम्हारे दुश्मन बन जाएंगे.
‘‘सभी लेखकों की तक़दीर में ले-देकर यही एकमात्र इनाम है. सिर्फ़ लेखक ही नहीं…तुम भी…फ़िल्म बनाते हो न? तुम्हारी तक़दीर में भी यही बदा है-यश का मूल्य.
‘‘यह सिर्फ़ मेरी या तुम्हारी ही तक़दीर नहीं, बल्कि मिथिलेश शर्मा भी ज़िंदगी भर यश का महसूल ही चुकाता रहा. कुल मिलाकर यह दुनिया पूर्ण सत्य को बर्दाश्त नहीं करती. जब भी कोई यश का हक़दार बनेगा. उसे यश का मूल्य भी गिनना पड़ेगा.’’

नोट: अगर आप भी अपने द्वारा पढ़ी किसी क्लासिक किताब के बारे में लिखना चाहते हैं तो, हमें [email protected] पर लिख भेजिए.

Tags: बिमल मित्रबिमल मित्र की किताबेंयश का मूल्यसाहब बीवी और ग़ुलाम
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