गणपति उत्सव कल से शुरू हो जाएगा. हम सब को पता है कि गणपति जी को दूब यानी दूर्वा चढ़ाई जाती है. दूब ख़ास तरह की घास है, जिसके सेहत से जुड़े कई फ़ायदे हैं. इन फ़ायदों के बारे में हमें जानकारी दे रहे हैं डॉक्टर दीपक आचार्य.
दूब घास का महत्व जितना पुराणों और हमारी भारतीय संस्कृति में देखने आता है, उतना ही महत्व इसका पारंपरिक तौर से तमाम रोगों के उपचार के लिए है. क्या आपने कभी कुत्तों को घास चबाते देखा है? जब उन्हें अपचन हो जाता है या पेट में कोई तकलीफ़ होती है, वे सबसे पहले दूब घास चबाते हैं और उल्टी कर देते हैं. ये ट्रीटमेंट का उनका अपना तरीक़ा है. क्लिनिकली देखा जाए तो पेट की कई सारी समस्याओं को छू मंतर करने के लिए दूब काफ़ी प्रभावी होती है. आज मैं इससे जुड़ी कुछ और दूसरी जानकारी देने जा रहा हूं.
मेलघाट (महाराष्ट्र) में तफ़रीह मारते हुए एक दिन एक हर्बल जानकार से मुलाक़ात हुई थी. उनकी छोटी सी फ़ार्मेसी में हर्पीज़ का एक पेशेंट आया हुआ था. इन हर्बल जानकार साहब ने उस पेशेंट से कहा कि चावल के आटे के साथ दूब के रस को मिलाकर उसका पेस्ट तैयार करें और शरीर के उन हिस्सों पर लगाएं, जहां हर्पीज़ का ज़्यादा प्रभाव है, जब ये पूरी तरह सूख जाए तो इसे साफ़ कर सकते हैं. हर दिन, इसे कम से कम तीन बार दोहराना होता है. मैंने पेशेंट का फ़ॉलोअप लेना शुरू किया. यक़ीन मानिए, मैं ये जानकर हैरान था कि सिर्फ़ तीन दिन में ही उसे बेहद आराम मिल चुका था. और ख़ास बात यह भी कि पहली बार लगाते ही उसके शरीर पर जलन और दर्द में 90% तक आराम मिल चुका था. दूब में ट्रायटरपिनोइड्स, पामिटिक ऐसिड, कैरोटीन, फ्रीडलीन जैसे रसायन पाए जाते हैं, जो ऐंटिवायरल हैं. ध्यान रहे कि हर्पीज़ एक वायरल रोग है.
घमौरियों (प्रिकली हीट) को रोकने के लिए पातालकोट के आदिवासी इसका रस पीठ, गर्दन और पेट पर लगाते हैं. घमौरियों में तुरंत आराम मिलता है. कई हर्बल जानकारों ने तो मुझे कई बार ये भी बताया है कि इसके रस का इस्तेमाल घाव को दुरुस्त करने के लिए भी ख़ूब करते हैं. इन दावों को पुख़्ता समझने के लिए कई रिसर्च पेपर्स खंगाल चुका हूं और हर बार दूब से जुड़ा पारंपरिक ज्ञान ‘हथौड़ा मार’ ही साबित हुआ है, एकदम सटीक, सौ प्रतिशत सटीक. तो जब भी कभी खुले मैदान, पार्क, सड़क किनारे या खेत खलिहान तरफ़ जाएं, दूब दिख जाए तो दीपक आचार्य को ज़रूर याद कर लेना. इसी बहाने हिचकी तो आएगी मुझे. आजकल हिचकियां ज़रा कम आ रही हैं.
एक बात और, गणपतिजी को बेहद पसंद है दूब या दूर्वा… दूर्वा यानी तमाम समस्याओं को दूर करने वाली. गणेशोत्सव की अग्रिम शुभकामनाएं. कितना कुछ सीखना बाक़ी है, कितना कुछ है हमारे आसपास ही, बस भटको तो सब मिलेगा. मैं तो भटका हुआ ही हूं, भगवान करे कभी मंज़िल ना मिले, भटकने का मज़ा जो ख़त्म हो जाएगा. बस जुड़े रहिए, प्यार लुटाते रहिए, हम पोटली खोलते रहेंगे समय-समय पर, देश का ज्ञान है तो आपका हक़ भी तो है इसे जानने का. और हां, ज़रूरतमंद लोगों के साथ इसे बांटते भी चलिए.
फ़ोटो : फ्रीपिक