कोरोना काल की सबसे बड़ी लड़ाई बेशक, इस बीमारी को हराने की होनी चाहिए, पर जैसा कि होता आया है हम मुख्य मुद्दे से भटक कर यहां उलझ जाते हैं, इस बार भी ऐसा ही हुआ है. आज सोशल मीडिया और टीवी स्टूडियोज़ की सबसे बड़ी लड़ाई यह हो गई है कि कोरोना समेत दूसरी बीमारियों को हराने में कौन ज़्यादा प्रभावी साबित हो सकता है-एलोपैथी या आयुर्वेद? जाने-माने आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ अबरार मुल्तानी बता रहे हैं, क्यों हमें इस बहस में न पड़ते हुए वह पैथी अपनाना चाहिए जो वक़्ती तौर पर हमारे लिए बेहतर हो.
इसमें क्या संशय है कि मानवता अगर आज एलोपैथी का युग देखने के लिए जीवित है तो वह जड़ी-बूटियों की वजह से ही है. किसने बचाए रखा मनुष्यों को इतने हज़ारों हजार साल तक? यह कहना तो सरासर कृतघ्नता ही होगी कि जड़ी-बूटियों से कुछ नहीं होता, यह सब बेकार है. यह कृतघ्नता दुर्भाग्यपूर्ण है. आप यह कहें कि लकड़ी के पहिए का आविष्कार करने वाले हमारे पूर्वज तो निरे मूर्ख थे जी उन्होंने सीधा एरोप्लेन क्यों नहीं बना लिया? महामारी के इस नाज़ुक मोड़ पर एलोपैथी बनाम आयुर्वेद करने का क्या तुक है सिवाय अपना-अपना माल ठिकाने लगाने के?
वे मूर्ख हैं जो उस मेकैनिक को बेकार कहे जो ब्रेक आदि अच्छे से रिपेयर करके एक बस का एक्सिडेंट होने से बचाता है और वह भी मूर्ख हैं जो उन रेसक्यू करने वालों को कुछ न समझे जो एक्सिडेंट होने पर उस बस को खाई में से निकाले, चोटिल लोगों की जान बचाए. आयुर्वेद, यूनानी या होमिओपैथी वाले मेकैनिक हैं और ऐलोपैथी वाले रेसक्यू टीम के मेम्बर. मैं जानता हूं कि इन मेकैनिक्स को कोई हीरो नहीं मानता… लेकिन रेस्क्यू मेंबर्स को लोग हीरो मानते हैं और मैं भी कभी उन्हें कमतर नहीं आंकूंगा. दोनों की ज़रूरत है और यह तो लोगों को चाहिए कि वे इन दोनों से ही समय-समय पर लाभ उठाते रहें.
मेरी सलाह यह है कि आप अपनी बॉडी रूपी मोटरकार या बस के लिए एक अच्छा मेकैनिक तलाशिए और उससे सर्विसिंग करवाते रहें साथ ही इमरजेंसी के लिए एक रेसक्यू ऑफ़िसर से भी बनाकर रखिए…
आप अंधभक्त नहीं, अवसरवादी बनिए
‘अवसरवादी’ यह शब्द सुनने में ही कितना नेगेटिव लगता है. आप कहेंगे डॉ मुल्तानी हमें अवसरवादी बनने की सलाह दे रहे हैं? तो दोस्तों मेरा मानना है कि सबसे समझदार रोगी वह है जिसे यह ज्ञान हो कि, कब उसे आयुर्वेद की मदद लेना चाहिए और कब उसे एलोपैथी की या अन्य किसी पैथी की. हर व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य को प्रथम पायदान पर रखना चाहिए और उससे संबंधित ज्ञान को अर्जित करने के प्रयासों को भी. क्योंकि स्वास्थ्य के बिना आख़िर हमारा अस्तित्व है कहां? मेरी राय आम लोगों को यह है कि, आप किसी भी पैथी के ना तो अंधसमर्थक बनिए और ना ही अंधविरोधी. किसी भी चिकित्सा पद्धति से आपकी या आपके अपनों की ज़िंदगी बच सकती है बस ज़रूरत है तो आपके सही समय पर सही फ़ैसले लेने की. बात ज़िंदगी की है इसलिए इलाज चुनने में हुई ग़लती सबसे घातक गलती होती है. ग़लती सुधारने का कई बार दूसरा मौक़ा नहीं मिलता. दवाओं की मंडी लगी है और सब अपना माल बेचना चाहते हैं अब यह ख़रीदार पर ही निर्भर है कि वह क्या ख़रीदता है. अपने विवेक का इस्तेमाल कीजिए और अपने लिए अच्छे चिकित्सक और अच्छी दवाइयां चुनिए.
प्रिय मित्रों, मेरी सलाह है कि आप थोड़े स्वार्थी बनिए, अवसरवादी बनिए और सब पैथियों से लाभ उठाइए. ये नहीं कि आप कहें कि, मैं तो पाइल्स या पथरी का ऑपरेशन ही करवाऊंगा लेकिन इन आयुर्वेद वालों की क्लीनिक पर कभी नहीं जाऊंगा या ये कहें कि मुझे अटैक आए या ब्रेन हैमरेज हो तो एलोपैथी के अस्पतालों में तो जाऊंगा ही नहीं. तो याद रखें दोस्तों जिसे चिकित्सा चुनना नहीं आता उसका सब ज्ञान और डिग्रियां बेकार है.
आपका एक छोटा-सा स्वास्थ्य सलाहकार
डॉ अबरार मुल्तानी
लेखक-बीमारियां हारेंगी