• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब नई कहानियां

दुःख सबके मुश्तरक, पर हौसले जुदा: रश्मि रविजा की कहानी

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
May 11, 2021
in नई कहानियां, बुक क्लब
A A
दुःख सबके मुश्तरक, पर हौसले जुदा: रश्मि रविजा की कहानी
Share on FacebookShare on Twitter

यदि सतर्क रहा जाए, सजग रहा जाए तो आप किसी भी परिस्थिति में अपनी ज़िंदगी को सही दिशा दे सकते हैं. लक्ष्मी ने मां की मौत के बाद अपने भाइयों के साथ विकट स्थितियों का कैसे सामना किया और कैसे मेहनत, ईमानदारी के बल पर अपनी ज़िंदगी को संवारा यह जानने के लिए पढ़ें यह कहानी.

मौसम बदल रहा था. ठंड के दिन शुरू होने वाले थे. हल्की-सी खुनक थी हवा में. लक्ष्मी हाथों में चाय का कप लिए बालकनी में खड़ी थी. सूरज डूबने वाला था. आकाश सिंदूरी रंग से नहाया हुआ था. आकाश में अपने घोसलों की तरफ लौटती चिड़ियों की चहचाहट और नीचे मैदान में खेल रहे बच्चों का शोर मिलकर एक हो रहे थे. बहुत ही ख़ूबसूरत दृश्य था. लक्ष्मी को ऐसे दृश्य बहुत ही पसंद थे और वह रोज शाम को नियम से चाय का कप लेकर बालकनी में आ खड़ी होती.
थोड़ी देर में हल्का-हल्का अंधेरा घिरने लगा. बच्चों की मांएं आवाज़ें लगाने लगीं. बच्चे घर की तरफ़ चल पड़े, पक्षी भी अपने घोसलों में दुबक गए. वातावरण बिलकुल शांत हो गया.
और लक्ष्मी को अपना बचपन याद आ गया, अंधियारा घिरते ही उसकी गली में आवाज़ें ही आवाज़ें होतीं. महिलाएं-पुरुष काम से लौटते और उनके बीच झगड़ा शुरू हो जाता. चारों तरफ़ शोर ही शोर होता. उसका अतीत रह-रहकर उसकी आंखों के समक्ष घूम जाता. उसने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि यूं एक अच्छी-सी सभ्य कॉलोनी में अकेली पूरी इज़्ज़त के साथ रह पाएगी वह.

एक बजबजाती खुली नाली के पास उसके बचपन का घर था. घर क्या, एक छोटा-सा, गन्दा-सा कमरा था, जिसमें लक्ष्मी अपने माता-पिता और दो छोटे भाइयों के साथ रहती थी. एक कोने में खाना बनता, दूसरे कोने में थोड़ी-सी पक्की जगह थी, जहां पानी भरी बाल्टी रखी होती. वहां बर्तन धुलते और उसकी मां स्नान करती. लक्ष्मी और उसके दोनों भाई तो गली में लगे नल के नीचे ही नहा लिया करते और बापू तो हफ़्ते दस दिन में एक दिन नहाया करता. एक तरफ़ टीन के पुराने बक्से रखे थे, जो आधे से ज़्यादा ख़ाली ही रहते. बीच में मां की फटी हुई साड़ी बिछा, वे तीनों भाई-बहन सो जाते. सो क्या जाते सहमे-से पड़े रहते. क्यूंकि थोड़ी रात बीतते ही उसका पिता शाराब पीकर गालियां देते हुए घर में आता. कभी खाना उठा कर फेंक देता, कभी मां को उसके लम्बे बालों से घसीटकर, उसे पीटता. एकाध बार लक्ष्मी और उसके छोटे भाई मां को बचाने गए तो उन्हें भी पीट दिया. मां भी बापू को ज़ोर-ज़ोर से गालियां देती. पर उस गली के हर मकान का यही क़िस्सा था. मांएं दिनभर घर-घर में बर्तन मांजकर पैसे कमा कर लातीं, बच्चों को पालतीं, खाना बनातीं और फिर शाम को पति से पिटतीं. मां के पैसे भी बापू छीनकर ले जाता.
ऐसे ही माहौल में वह बड़ी हो रही थी. मां की ज़्यादा से ज़्यादा मदद करने की कोशिश करती. पांच साल की उम्र से ही, घर में झाड़ू लगा देती. कच्ची-पक्की रोटी बनाने की कोशिश करती. मां के साथ काम पर भी चली जाती. उनके छोटे-मोटे काम कर देती. वे लोग कुछ खाने को देतीं तो छुपा कर भाइयों के लिए ले आती. भाई सारा दिन धूल-धूसरित गलियों में कंचे खेला करते या फिर साइकल के टायर को पूरी गली में घुमाते रहते.

जैसे-तैसे दिन कट रहे थे वह आठ या नौ साल की थी, जब कहर टूट पड़ा उस पर. एक दिन बापू, मां को पीट रहे थे, मां भी गालियां दे रही थी. उस दिन पता नहीं बापू को क्या हो गया, उसने बगल में रखा कैरोसिन तेल का डब्बा उठाया और मां के ऊपर डालकर आग लगा दी. मां चिल्लाने लगीं. वो छोटे-छोटे कटोरे से पानी डालकर आग बुझाने की कोशिश करने लगी. गली के लोग भी आ गए. किसी ने दरी डाली, किसी ने पानी और आग बुझा दी. बापू बाहर भाग गया. बगल वाली काकी, मां को अस्पताल ले गई. कुछ दिन अस्पताल में रहकर मां वापस घर आ गई. पर बेहद कमज़ोर हो गई थी. वह ठीक से चल भी नहीं पाती थी. नौ साल की उम्र में घर का सारा भार लक्ष्मी पर आ पड़ा. मां जिनके यहां काम करती थीं वो शर्मा मालकिन एक दयालु महिला थीं. उन्होंने छोटे-छोटे कामों के लिए लक्ष्मी को रख लिया.
अब लक्ष्मी सुबह उठती, घर का सारा काम करती. घर में जो भी राशन पड़ा होता आटा , चावल बना कर रख देती. कभी-कभी कुछ भी नहीं होता. तो बगल के बनिए की दुकान से उधार डबल रोटी लाकर रख देती. उसमें से थोड़ा-सा निकाल कर मां के तकिए के पास छुपा देती. वरना पता था, दोनों भाई, मां के लिए कुछ नहीं छोड़ेंगे. बाहर से बाल्टी में पानी भर-भर कर लाती. मां को नहलाती, स्टूल पर खड़े होकर उनके लम्बे बाल धो देती, उनके कपडे साफ़ कर देती. कुछ ही दिनों में छलांग लगाकर एक लम्बी उम्र पार कर ली थी, लक्ष्मी ने. मां आंसू पोंछती रहती, कहती,‘‘मैं किसी काम की नहीं, मर जाती तो अच्छा होता.’’ वो भी साथ में रोने लगती तो मां चुप हो जाती. इतना काम करने के बावजूद वो ख़ुश रहती, क्यूंकि घर में शान्ति थी. बापू पुलिस के डर से उन्हें छोड़कर भाग गया था. लक्ष्मी भगवान से मनाती, वो कभी लौट कर ही न आए.

लेकिन भगवान ने उसकी नहीं सुनी. क़रीब एक साल के बाद एक रात बापू धड़धडाता हुआ घर में घुस आया,”बहुत मजे कर रहे हो, तुम लोग मेरे बिना? तू मरी नहीं, अब तक? कितना कमाती है तेरी बेटी, ला पैसा ला.”
“इतनी छोटी उम्र में इतना काम कर रही है, पूरा घर संभाल रही है, उसे तो छोड़ दे,” मां ने कराहते हुए कहा.
“जुबान लड़ाती है,” कहता वो मां की तरफ़ बढ़ा ही था कि वो बीच में आ गई.
“बापू बस बीस रुपए हैं, ले लो, पर मां को मत मारो…”
“ला, जल्दी ला.’’
और वो थोड़ी-सी जमा पूंजी लेकर बापू चलता बना.
मां जो थोड़ी ठीक होने लगी थी, सब्ज़ी काट देती, चावल बीन देती, किसी तरह खिसककर दरवाज़े के पास बैठने लगी थी. बापू के आने के बाद ही फिर से बीमार पड़ गई.
शर्मा मालकिन को बताया तो वे कहने लगीं,”सदमा लग गया है तेरी मां को. डर गई है बापू को देखकर.”
मां की सेहत दिन ब दिन गिरती गई. उसने खाना-पीना छोड़ दिया और एक दिन उसकी मौत हो गई.
***
वह छोटे भाइयों को गले लगाकर बहुत रोई. बापू से उसे बहुत डर लगता था. पर अच्छा था, बापू दिन भर ग़ायब रहता, देर रात घर आता, कभी नहीं आता और थोड़ी बक-झक के बाद शराब के नशे में सो जाता. लक्ष्मी ने अब एक दो और घरों में काम करना शुरू कर दिया. वह मन लगाकर, मेहनत से काम करती. कभी किसी का कोई सामान नहीं छूती. साफ़-सुथरी रहती. सलीके से कपड़े पहनती, बाल बनाती. सभी मालकिन उसके काम से बहुत ख़ुश रहतीं. अपनी बेटियों के चप्पल, कपड़े, उसके भाइयों के लिए भी पुराने शर्ट-पैंट दे देतीं.
दिन गुज़र रहे थे. कुछ दिन से बापू बड़े प्यार से बातें करता घर में डांट-डपट नहीं करता. उस से पैसे भी नहीं मांगता. उसे थोड़ा आश्चर्य हो रहा था. एक दिन बापू दो आदमियों के साथ आया.
उससे कहा,”पानी ला… चाय बना.”
लक्ष्मी ने डरते-डरते चाय बना कर दे दी. पर वह ग़ौर कर रही थी कि चाय बनाते हुए भी वे दोनों आदमी उसे लागातार देख रहे थे. दुपट्टे से उसने ख़ुद को जितना हो सकता था, ढंक लिया. उसे लगा बापू शायद उसकी शादी करने की सोच रहा है. वो तो कभी नहीं करेगी शादी. उसे कमाकर पैसे नहीं लाने और पति से मार नहीं खानी. उसकी बिरादरी में सब ऐसा ही करते हैं.
चाय पीने के बाद, बापू उन आदमियों के साथ बाहर चला गया. थोड़ी ही देर बाद उसका छोटा भाई दौड़ता हुआ घर में आया.
“दीदी, बापू तुझे उन आदमियों के हाथों बेच रहा है.”
“क्या?”आश्चर्य से उसका मुहं खुला रह गया.
“हां दीदी, उस आदमी ने बापू को बड़े-बड़े नोट दिए हैं. मैं अंधेरे में से छुपकर सब देख रहा था. और उसने कहा कि बाक़ी पैसे लड़की को ले जाने आऊंगा तब दूंगा.”

अब लक्ष्मी क्या? करे उसका दिमाग़ तेजी से चलने लगा. उसने दोनों भाइयों को पास बिठाया और कहा,”देखो बम्बई से शर्मा मालकिन की बहन आई थीं. वे मुझसे अपने यहां बम्बई में काम करने के लिए, साथ चलने को कह रही थीं. मैं नहीं गई कि तुम लोगों का ख़्याल कौन रखेगा. पर अब अगर नहीं गई तो बापू मुझे बेच देगा. तुम दोनों बड़े हो गए हो, अब अपना ध्यान रख सकते हो. मैं शर्मा मालकिन को हां बोल देती हूं.”
दोनों भाई रुआंसे हो गए. छोटा भाई तो डर कर उस से लिपट गया,‘’ना दीदी. मुझे भी अपने साथ लेती जाओ…”
चौदह साल के बड़े भाई ने बड़े-बुजुर्ग सा समझाया,”नहीं दीदी को जाने दे छोटे. जब हम और बड़े हो जाएंगे, अच्छा कमाने लगेंगे तो अलग घर में रहेंगे फिर दीदी को बुला लेंगे. “
उसका मन भर आया. पर यह कमज़ोर पड़ने का समय नहीं था. उसने तेज़ी से अपनी चीज़ें इकट्ठा करना शुरू कर दिया. बापू का क्या ठिकाना, उसे सुबह-सुबह ही निकल जाना होगा. शर्मा मालकिन बहुत भली हैं. जब तक बम्बई जाने का इंतज़ाम नहीं हो पाता, वे उसे अपने घर में रहने की इजाज़त ज़रूर दे देंगीं. काम में देर हो जाने पर कितनी बार तो कहती हैं,‘रुक जा रात को यहीं.’ वो उसकी मुश्क़िल ज़रूर समझेंगी.
शर्मा मालकिन तो बापू की यह बात सुनते ही आगबबूला हो गईं. पुलिस में ख़बर करने के लिए कहने लगीं. लक्ष्मी ने बड़ी मुश्क़िल से समझाया कि बापू बिलकुल मुकर जाएगा और फिर उसे बहुत पीटेगा. फिर उन्होंने कहा,” ठीक है, अब तू उस घर में पैर मत रखा रखना. यहीं रह मेरे पास. पीछे आंगन में जो कमरा है, उसे साफ़-सूफ़ करके उसी में रह जा. अब उस राक्षस के घर में मत जा.”
उसने बताया कि यहां रहना ठीक नहीं होगा . बापू शायद आपसे भी झगड़ा करे. मुझे शेफाली दीदी के यहां बम्बई भेज दीजिए. वो जब यहां आई थीं तो बार-बार कहती थीं न,”दीदी इसे मुझे दे दो.”
“हम्म ये ठीक रहेगा, शेफाली के पास रहेगी तो मुझे भी चिंता नहीं होगी. वो तो कई बार कह चुकी है. आज ही उसे फ़ोन करती हूं. पर तुम चिंता मत करो.’’
शर्मा मालकिन का मां का सा स्नेह देखकर उसका मन पिघल गया. अगर भगवान एक तरफ़ से कष्ट देता है तो दूसरी तरफ़ से कई हाथ उस कष्ट से बचाने के लिए भी देता है.

दो दिन बाद ही शेफाली दीदी के यहां जाने के लिए शर्मा मालकिन ने उसे बम्बई की ट्रेन में लेडीज़ कूपे में बिठा दिया. आसपास वालों को उसका ख़्याल रखने को कह दिया. अपना फ़ोन नंबर भी दे दिया, ताकि वो जब चाहे भाइयों से बात करती रहे.
शेफाली दीदी उसे स्टेशन पर लेने आई थीं. शेफाली दीदी भी शर्मा मालकिन की तरह ही दिल की बहुत अच्छी थीं. उसका बहुत ख़्याल रखतीं पर उसे उनके घर का माहौल लक्ष्मी को रास नहीं आता. शेफाली दीदी के पति फ़िल्मो में कुछ करते थे. हमेशा उनके यहां लोगों की भीड़ लगी होती. देर रात तक पार्टियां होतीं. दिन-रात का कोई भेद ही नहीं होता. अजीब-अजीब से लोग उनके घर आते, फटी जींस वाले, लम्बे बालों वाले, लगातार सिगरेट फूंकते हुए. सब लोग शराब पीते, देर रात तक उनके ठहाके गूंजते. उसे बहुत अजीब-सा लगता. कई लोग कभी-कभी उसे घूर कर भी देखते. लक्ष्मी को बिलकुल अच्छा नहीं लगता. वो इस माहौल से निकल जाना चाहती थी.
लक्ष्मी जब सब्ज़ियां लेने जाती तो पास की एक आंटी भी अक्सर मिलतीं. वे लक्ष्मी से बड़े प्यार से बातें करतीं और एक दिन लक्ष्मी ने अपने मन की उलझन उनके सामने रख दी और पूछ लिया,”आप मुझे कहीं और काम दिलवा सकती हैं?”
उन्होंने उसकी समस्या समझी और कहा,”कोशिश करेंगे ”
और एक हफ़्ते बाद ही वे रास्ते में उसके इंतज़ार में ही खड़ीं थीं. उनकी एक सहेली को पूरे दिन के लिए एक लड़की चाहिए थी. सहेली और उसके पति दोनों नौकरी करते थे. उनकी एक छोटी सात साल की बेटी थी, जिसकी देखभाल के लिए उन्हें कोई अच्छी-सी लड़की चाहिए थी. आंटी बार-बार अपनी सहेली के अच्छे स्वभाव की बात कर रही थीं.

लक्ष्मी को भी ऐसा ही शांत माहौल चाहिए था. इस घर में आकर उसे बहुत अच्छा लगा. अनुष्का प्यारी सी शांत सी लड़की थी. लड़की की मां, जिन्हें वो शोभा दीदी कहा करती थी. वे भी मीठा बोलने वाली थीं. किसी बात पर डांटती नहीं. घर का सारा भार उसे सौंप दिया था. वे सुबह-सुबह ऑफ़िस चली जातीं, शाम में घर वापस आतीं. पूरे घर की जिम्मेवारी लक्ष्मी की ही थी अब. वह भी बहुत मन लगाकर काम करती. शोभा दी भी उसके काम में मीन-मेख नहीं निकालतीं. उसे अपनी बेटी जैसा ही मानती. बेटी के लिए चॉकलेट, आइसक्रीम लातीं तो उसके लिए भी ले आतीं. शनिवार, रविवार जब उनकी छुट्टी रहती तो घर के कामों में भी हाथ बंटाती. शोभा दी के पति अपने काम से मतलब रखते. अख़बार पढ़ते, फ़ोन पर बात करते या फिर कंप्यूटर पर काम करते रहते. वे अक्सर टूर पर भी जाया करते थे.
दो साल के बाद शोभा दी का ट्रांसफर एक छोटी-सी जगह पर हो गया. वहां उनकी बेटी अनुष्का के लिए अच्छे स्कूल नहीं थे. शोभा दी नई जगह पर चली गईं. उनके पति भी अक्सर टूर पर चले जाते. पूरा घर लक्ष्मी अकेले संभालती. शोभा दी पूरे घर के ख़र्च के पैसे उसके हाथों में दे देतीं. लक्ष्मी एक एक पैसे का हिसाब रखती .
बचपन के कष्टों ने लक्ष्मी को बहुत निडर और हिम्मती बना दिया था. वो किसी से नहीं डरती. एक बार बिल्डिंग के वॉचमैन ने कुछ छींटाकशी की उस पर. लक्ष्मी ने वहीं चप्पल निकाली और दो चप्पल लगा दिए. पूरे इलाके में यह बात फ़ैल गई. अब आसपास की बिल्डिंग के वॉचमैन, ड्राइवर सब उससे डरकर रहते. वो नीचे सब्ज़ी भी लेने भी जाती तो सब उस से सहमक,र नज़रें नीची कर के बात करते. लक्ष्मी भी यह दिखाने के लिए कि वह किसी से नहीं डरती, सबसे बहुत रूखे स्वर में बात करती. मुश्क्रिल ये हो गई कि यह उसकी आदत में शुमार हो गया.
अब वह घरवालों से भी रूखा ही बोलती. ख़ुद को घर की मालकिन समझती, क्यूंकि शोभा दी महीने में एक बार ही आतीं. घर के सारे निर्णय वही लेती. कौन-से परदे लगेंगे, कौन-सी चादर बिछेगी, कौन-सी चीज़ कहां-कहां रखी जाएगी. शोभा दी को ये सब अच्छा नहीं लगता. पर उसकी ईमानदारी, काम के प्रति लगन, अपना घर समझकर काम करना, पूरी ज़िम्मेदारी उठाना, अनुष्का को बहुत सारा प्यार देना, ये सब देखकर वे चुप रहतीं.

अब लक्ष्मी के पास काफ़ी समय रहता. अनुष्का ने उसे पढ़ाना-लिखना सिखाना शुरू किया. लक्ष्मी को भी पढ़ने में बहुत दिलचस्पी हो गई. ज़रा-सा भी ख़ाली वक़्त मिलता तो वह किताबें लेकर बैठ जाती. अनुष्का भी अच्छी टीचर थी, उसे बहुत मन से पढ़ाती. स्कूल जाती तो उसे होमवर्क देकर जाती. और अगर वो होमवर्क नहीं करती तो उसे सज़ा देने के लिए अनुष्का ख़ुद खाना नहीं खाती. फिर उसे अनुष्का की घंटों मनुहार करनी पड़ती. अब वो जल्दी से घर का काम ख़त्म कर होमवर्क करने लगी. धीरे-धीरे वह अंग्रेज़ी के कॉमिक्स, चंदामामा, चम्पक से शुरुआत कर, पत्रिकाएं और अख़बार सब पढ़ने लगी. अनुष्का के साथ अंग्रेज़ी के प्रोग्राम देखते हुए वो अच्छी तरह अंग्रेज़ी समझने लगी. अनुष्का भी उसे सिखाने के लिए, उससे ज़्यादातर अंग्रेज़ी में ही बात करती. अब लक्ष्मी बाहर जाती तो अंग्रेजी में ही बोलने की कोशिश करने लगती. शोभा दी की सहेलियां या उनके पति के दोस्त घर आते तो उसे देख दंग रह जाते. कई लोग तो उसे घर का सदस्य ही समझ लेते.
जब तीन साल बाद शोभा दी का ट्रांस्फ़र वापस इस शहर में हो गया तो शोभा दी ने लक्ष्मी से कहा कि अब वो उसकी शादी कर देना चाहती हैं. लक्ष्मी की रूह कांप गई. उसके अपने माता-पिता का जीवन आंखों के सामने आ गया और गली के और लोगों का जीवन भी. महिलाएं हाड़ तोड़कर कमातीं और उनके पति शराब के नशे में उन्हें मारते भी और उनके पैसे भी छीन कर ले जाते. उसे नहीं चाहिए थी ऐसी ज़िन्दगी. उसने शोभा दी से साफ़ कह दियाउसे शादी नहीं करनी, अगर वे उसे नहीं रखना चाहतीं तो वह दूसरी जगह कोई काम देख लेगी पर आजीवन शादी नहीं करेगी. ये उसका अंतिम फ़ैसला है.
शोभा दी ने उसकी बात मान ली. लक्ष्मी बीच बीच में अपनी शर्मा मालकिन के यहां फ़ोन करके भाइयों का हालचाल लेती रहती. पता चला दोनों भाई एक कारखाने में नौकरी करने लगे हैं और पिता से अलग रहते हैं. दोनों ने शादी भी कर ली. उसे बहुत बुला रहे थे,’एक बार आकर मिल जा.’ शोभा दीदी ने भी ख़ुशी-ख़ुशी उसे छुट्टी दे दी और भाइयों के लिए ढेर सारे उपहार भी ख़रीद कर दे दिए. अब तक का उसका सारा वेतन भी जोड़ कर दे दिया.

वहां जाकर लक्ष्मी ने सारे पैसे भाइयों को दे दिए. उपहार तो दिए ही, भाभियों को उसके जो भी कपड़े पसंद आते, वो दे देती. जब लौटने का समय आया तो लक्ष्मी ने पाया उसके पास बस दो जोड़ी कपड़े बचे हैं. फिर भी उसने सोचा, उसके लिए काफ़ी हैं. अभी जाएगी तो शोभा दी ख़रीद ही देंगीं. पर जब वापस काम पर आई तो उसके दस दिन बाद ही उसकी भाभी ने एक पत्र भेजा. अब ख़ुद लिखा या किसी और से लिखवाकर भेजा पता नहीं, पर पत्र का मजमून था- आप इतने दिन यहां रहीं, आपको अच्छा खिलाने-पिलाने के लिए हमें क़र्ज़ लेना पड़ा. अब उनके पैसे लौटाने हैं. आप पैसे भेज दो. लक्ष्मी समझ गई. उसके हाथों हुआ ख़र्च देखकर ये लोग उसके पैसों पर नजरें गड़ाए बैठे हैं. लक्ष्मी ने वो पत्र फाड़कर फेंक दिया और फिर भाइयों के घर कभी नहीं गई. शोभा दीदी का घर ही ,अब उसका घर था.
अनुष्का बड़ी होती गई. उसने कॉलेज पास किया और नौकरी भी करने लगी. उसकी शादी हो गई. घर में काम भी कम होता. शोभा दी और उनके पति अक्सर घूमने-फिरने शहर से बाहर चले जाते. लक्ष्मी बहुत अकेलापन महसूस करने लगी और उसी दरम्यान एक हादसा हो गया. सीढ़ियों से फिसलकर वह अपनी कमर की हड्डी तुड़वा बैठी. अगर परीक्षा में अच्छे नम्बरों से पास होते रहो तो नियति परीक्षा लेना छोड़ती ही नहीं. शोभा दी ने उसके इलाज का पूरा ख़र्च उठाया. हॉस्पिटल में उसके साथ रहीं. अनुष्का ने भी ऑफ़िस से छुट्टी लेकर उसकी अच्छी देखभाल की. घर पर भी उसे पूरा आराम दिया. पर पूरी तरह ठीक होने के बाद भी अब वह पहले की तरह काम नहीं कर पाती. झुक नहीं पाती. तेज़ चल नहीं पाती. लक्ष्मी को बहुत बुरा लगने लगा. उसे लगने लगा , वो शोभा दी पर बोझ बन गई है. लक्ष्मी बार-बार उनसे मिन्नतें करने लगी कि अब उसे छुट्टी दे दें. अब वो पहले की तरह उनके काम नहीं आ पाती. उसकी इलाज पर भी इतना ख़र्च हो गया है. वो कहीं और काम करके अपना जीवन गुजार लेगी. उन पर बोझ नहीं बनना चाहती.
पर लक्ष्मी ने नाजुक वक़्त में शोभा दी की गृहस्थी संभाली थी, उनकी अनुपस्थिति में उनकी बच्ची की प्यार से देखभाल की थी. ये वो नहीं भूल पाई थीं. वे लक्ष्मी को अकेला बेसहारा नहीं छोड़ सकती थीं. उन्होंने लक्ष्मी की मदद का एक उपाय निकाला. उनका एक फ़्लैट खाली पड़ा था, जिसे इन्वेस्टमेंट के लिए ख़रीदकर रख छोड़ा था. उन्होंने लक्ष्मी से कहा, उस फ़्लैट में वो एक क्रेश खोल ले. वो बच्चों की अच्छी देखभाल कर लेती है. नौकरी वाली कई मांओं को अच्छे क्रेश की ज़रूरत होती है. क्रेश की सारी रूपरेखा, शोभा दी और अनुष्का ने बनाई. बोर्ड बनवाए, पर्चे बांटे और धीरे-धीरे लक्ष्मी के पास कई बच्चे आने लगे. लक्ष्मी ईमानदार और कर्मठ तो थी ही. बच्चों का पूरा ध्यान रखती. पढ़ना-लिखना भी जानती थी, स्कूल जाने वाले बच्चों के होमवर्क भी करवा देती. छोटे बच्चों को गिनती, नर्सरी राइम्स, कलर करना सब सिखाती. सभी मांएं उस से बहुत ख़ुश रहतीं. इंजीनियर, डॉक्टर, ऊंचे पदों पर काम करने वाले स्त्री-पुरुष ,जब अपने बच्चों को लेने छोड़ने आते तो लक्ष्मी से इतने सम्मान के साथ बात करते कि उसकी आंखें भर आतीं. अब तो उसने दो हेल्पर रख लिए थे. क़रीब बीस बच्चे उसके पास रहते. उसका समय भी अच्छा कट जाता और अच्छे पैसे भी मिल जाते.

जिंदगी इतनी सारी सीढियां चढ़ती-उतरती अब एक समतल रेखा पर चलने लगी थी. चाय कब की ख़त्म हो चुकी थी. बाहर अंधेरा घिर चुका था. लक्ष्मी सोचने लगी, कितने भी कष्ट आएं जीवन में अगर अपने कर्म अच्छे रखो तो अच्छे लोगों का साथ मिल ही जाता है. अगर उसने सही समय पर सही निर्णय लेने की हिम्मत नहीं दिखाई होती अपना काम मेहनत, लगन और ईमानदारी से नहीं किया होता तो आज वह इस शांतिपूर्ण जीवन की हक़दार नहीं होती.
एक दादाजी अपने पोते को क्रेश में छोड़ने आते. अक्सर लक्ष्मी से कुछ बातें कर लिया करते. लक्ष्मी समझती थी, इस महानगर में उनसे दो बातें करने वाला भी कोई नहीं है. कभ-कभी वे कुछ शेर भी पढ़ा करते. लक्ष्मी को समझ नहीं आता फिर भी वह रुचि दिखाती, सर हिलाया करती. ये शेर भी ख़ास समझ तो नहीं आया पर अपने लिए सही लगा:
दुःख सबके मुश्तरक हैं, पर हौसले जुदा
कोई बिखर गया तो कोई मुस्करा दिया

इन्हें भीपढ़ें

फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

January 1, 2025
democratic-king

कहावत में छुपी आज के लोकतंत्र की कहानी

October 14, 2024
त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

October 2, 2024
पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों: सफ़दर हाशमी की कविता

पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों: सफ़दर हाशमी की कविता

September 24, 2024

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट, polinabright.com

Tags: A short story by Rashmi RavijaBook clubDukh sabke mashtarakfictionnew storypar hausale judaRashmi Ravijashort storyछोटी कहानीनई कहानीफ़िक्शनबुक क्लबरश्मि रविजारश्मि रविजा की कहानीशॉर्ट स्टोरी
टीम अफ़लातून

टीम अफ़लातून

हिंदी में स्तरीय और सामयिक आलेखों को हम आपके लिए संजो रहे हैं, ताकि आप अपनी भाषा में लाइफ़स्टाइल से जुड़ी नई बातों को नए नज़रिए से जान और समझ सकें. इस काम में हमें सहयोग करने के लिए डोनेट करें.

Related Posts

ग्लैमर, नशे और भटकाव की युवा दास्तां है ज़ायरा
बुक क्लब

ग्लैमर, नशे और भटकाव की युवा दास्तां है ज़ायरा

September 9, 2024
लोकतंत्र की एक सुबह: कमल जीत चौधरी की कविता
कविताएं

लोकतंत्र की एक सुबह: कमल जीत चौधरी की कविता

August 14, 2024
बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले: भवानी प्रसाद मिश्र की कविता
कविताएं

बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले: भवानी प्रसाद मिश्र की कविता

August 12, 2024
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.