हर दार्शनिक कहता रहा है कि हमें अपने अंदर के बच्चे को ज़िंदा रखना चाहिए. कवि राहुल राजेंद्र खंडालकर की इस कविता का भावार्थ भी यही है.
सब कहते हैं
‘एक छोटा बच्चा रहता है’
सभी के अन्दर
मैं रोज़ वो छोटा बच्चा ढूंढ़ता हूं
अपने अन्दर की तंग भूल भुलैया में
नहीं मिलता मुझे ऐसा कोई छोटा बच्चा
मिलती हैं तो बस लाशें
एक-दो नहीं हज़ारों लाशें
लाशें शायद उन्हीं छोटे बच्चों की
बचपन, भोलापन, मस्ती आदि इत्यादि
जिनके नाम रहे होंगे
उन बच्चों को कोई मार चुका है
और आवाज़ें लगातार आ रही हैं
अन्दर की अलग-अलग अगली गलियों से
जैसे संहार अब भी जारी है
कोई मार है जैसे उन्हें लगातार
और क़त्ल जारी है उनका दार-दार
लेकिन गर है कोई भी बच्चा किसी में सलामत कहीं
तो बचा के रखना होगा हम सब को उसे
कि ये दुनिया सिर्फ़ वो बच्चे ही चलाएंगे
वरना रह जाएंगी सिर्फ़ लाशें,
अन्दर भी और बाहर भी हर जगह
बस लाशें…सिर्फ़ लाशें!!!
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