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Home ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#12 दिखावा या प्यार? (लेखिका: शरनजीत कौर)

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
March 18, 2023
in ज़रूर पढ़ें, नई कहानियां, बुक क्लब
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फ़िक्शन अफ़लातून#12 दिखावा या प्यार? (लेखिका: शरनजीत कौर)
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 प्यार तो बस प्यार होता है, उसे किसी झूठे दिखावे की कोई ज़रूरत नहीं होती. इसी सार्वकालिक सच को एक बार फिर उकेरती है यह कहानी.

“अरे! तुम तैयार नहीं हुई अब तक?” विनय ऑफ़िस से आते ही राधिका से बोला, “तुम्हें पता है न कि आज राजेश भाई और रीमा भाभी की शादी की सालगिरह है?”

“हां, पता तो है पर आज तबीयत कुछ ढीली सी लग रही है, तुम अकेले ही चले जाओ न,” राधिका माथा दबाती हुई बोली.
“क्या हुआ, माइग्रेन फिर से उभर आया क्या?” विनय राधिका के पास बैठता हुआ बोला,” सब अपनी-अपनी पत्नियों के साथ आते हैं, मैं अकेला कैसे चला जाऊं? तुम कोई दवाई ले लो. ज़्यादा देर नहीं रुकेंगे… जल्दी वापस आ जाएंगे.” विनय ने राधिका का सिर प्यार से सहलाया.

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राधिका जानती थी कि विनय अकेला कभी नहीं जाएगा, उसने अपनी तरफ़ से बहाना बनाने की कोशिश की थी.

राधिका को विनय के साथ जाने में कोई परेशानी नहीं थी, उसे परेशानी थी विनय के साथ उसके ऑफ़िस के दोस्तों की मंडली में जाने से, उसमें भी राजेश और रीमा की जोड़ी उसे बहुत अजीब लगती थी. राजेश दूर के रिश्ते में विनय का भाई लगता था और विनय के ऑफ़िस में उससे ऊंची पोस्ट पर था. उसकी पत्नी रीमा को पता नहीं राधिका से क्या परेशानी थी कि वो कोई मौक़ा नहीं छोड़ती थी तंज कसने का.

यूं तो विनय और उसके दोस्तों का अच्छा ग्रुप था और अपने-अपने घरों से दूर यह दोस्त-यार ही सुख-दुख के साथी थे. उन सभी की पत्नियों से भी राधिका की अच्छी दोस्ती थी, लेकिन उसे अच्छा ये नहीं लगता था कि इस तरह की पार्टियों में जब सब दोस्त इकठ्ठा होते थे तो शराब की बोतल खुल ही जाती थी और विनय शराब नहीं पीता था तो उसका मज़ाक बनता था कि बीवी से डरता है. और तो और हमेशा ही पार्टी में कोई ना कोई ऐसा गेम रखा जाता था, जिससे यह पता चलता था कि पति और पत्नी एक दूसरे के बारे में कितना जानते हैं और इस तरह के गेम में हमेशा ही विनय और राधिका सबसे पीछे रह जाते थे. जहां राधिका को विनय की एक-एक पसंद और नापसंद के बारे में पता होता था विनय, राधिका के बारे में कुछ ख़ास नहीं बता पाता था और ऐसी हालत में विनय के दोस्तों की पत्नियां राधिका की तरफ़ बड़ी दयनीय दृष्टि से देखती थीं, मानो वह बहुत ही दया की पात्र है, जिसके पति को उसकी पसंद ना पसंद या फिर उसकी दैनिक दिनचर्या के बारे में नहीं पता होता है.

इसके बाद राधिका चाहे कितना भी कह ले कि विनय का स्वभाव ही ऐसा है कि वह इस तरह की बातें याद नहीं रख पाता कोई भी उसकी बात पर यक़ीन न करता और अनजाने में ही विनय और राधिका का प्यार भरा रिश्ता तौला जाने लगता और राधिका अपने-आप को कटघरे में खड़ा हुआ महसूस करती.

घर वापस आने पर राधिका ये सब विनय से कहती तो वो हंसी में उड़ा देता कि गेम ही तो है, उसके बारे में इतना क्या सोचना? कहता, ‘‘हमारा प्यार किसी गेम का मोहताज थोड़े ही है! तुम जानती हो कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं, मैं जानता हूं कि तुम मेरे बिना रह नहीं सकती तो और किसी सबूत की क्या जरूरत है यार?”

विनय की बातें राधिका की समझ में बख़ूबी आती थीं, लेकिन फिर भी उसके दोस्तों की पत्नियों के सामने वह अपने आप को कमतर महसूस करने लगती थी इसलिए धीरे-धीरे ऐसी पार्टियों में शामिल होने की राधिका की रुचि ख़त्म होती जा रही थी.

आज भी ऐसा ही हुआ. हंसी-मज़ाक और बधाइयों के दौर के बाद नए गेम की शुरुआत की गई. आज भी पति पत्नी को एक दूसरे के द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली चीज़ों के ब्रांड का नाम बताना था, चाहे वो कपड़े हों, चाहे परफ़्यूम, चाहे पर्स, नेलपालिश, शेविंग क्रीम और ऐसी ही अनगिनत चीज़ें… हमेशा की तरह राधिका और विनय फिर पीछे रह गए, क्योंकि विनय को राधिका तो क्या अपने ब्रांड के बारे में ही नहीं पता था.

“हमें तो पहले ही पता था कि तुम ही हारोगी. विनय को तुम्हारे बारे में कुछ भी नहीं पता होता राधिका,” हंसते हुए राजेश की पत्नी रीमा बोली और एक ज़ोरदार ठहाका राधिका को अपनी खिल्ली उड़ाता सा लगा.
‘‘ऐसे ही हैं ये, इन्हें कुछ याद ही नहीं रहता,’’ राधिका ने मुस्कुराते हुए बात संभालने की कोशिश की.

“ये तो याद है न कि तुम उसकी पत्नी हो?” इस वाक्य साथ ही फिर से हंसी का फव्वारा छूट पड़ा और राधिका भी उन सबके बीच मुस्कुरा दी, पर उसकी आंखों की नमी विनय से छिप न सकी.

आज उसे भी अपने सब दोस्तों और उनकी पत्नियों का मज़ाक चुभ-सा गया. उसे अपने-आप पर ही ग़ुस्सा आ रहा था कि वो क्यों नहीं ध्यान देता राधिका की इन सब चीज़ों पर? बाक़ी दोस्त भी तो हैं… सभी को अधिकतर पता ही होता है अपनी पत्नियों के बारे में.
“घर चलें क्या?” राधिका उतरे हुए मुंह के साथ उसके पास आई.
यह बात विनय के दोस्त राकेश ने सुनी तो वह बोल पड़ा, “अरे! बस कुछ देर और राधिका, अभी तो खाना भी नहीं खाया…” राजेश उसकी तरफ़ देख कर बोला.

“नहीं राजेश भाई फिर कभी. आज राधिका की तबीयत कुछ ठीक नहीं है,” विनय भी अब बैठने के मूड में नहीं था.
“तबियत ख़राब है या डर कर भाग रही हो राधिका,” रीमा ने फिर चुटकी ली और एक प्लेट में मशरूम पिज़्ज़ा रख कर राधिका की तरफ़ बढ़ाया.

राधिका ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला पर विनय की तरफ़ देखकर उसने अपने-आप पर क़ाबू पाया… तभी विनय ने पिज्जा की प्लेट पकड़ कर साइड में रख दी.
“नहीं भाभी! भागना किस से? यहां सभी तो अपने हैं. बस, राधिका की तबीयत ज़्यादा ख़राब न हो जाए इसी वजह से…और मुझे चाहे ये पता हो या न हो कि राधिका शैम्पू कौन सा इस्तेमाल करती है, पर इतना ज़रूर पता है कि आज वो सिर्फ़ मेरे कहने से यहां आई थी, क्योंकि उसे पता था कि मैं अकेला नहीं आऊंगा. शायद मुझे ये भी नहीं पता होता कि उसकी फ़ेवरेट ड्रेस कौन-सी है, पर मुझे ये पता है कि उसे मशरूम से एलर्जी है…” विनय पिज़्ज़ा की प्लेट की तरफ़ इशारा कर के आगे बोला, “इसलिए मैं ध्यान रखता हूं कि वो ऐसी लापरवाही न कर जाए और ग़लती से भी न खा ले. आप सही कह रही हैं भाभी कि मुझे नहीं पता होता कि राधिका के पास सबसे क़ीमती गहना कौन-सा है, क्योंकि मैं तो उसे बस वही ले देता हूं, जो भी उसे पसंद आता है और वैसे भी मेरे लिए तो सबसे बेशक़ीमती राधिका ही है उसके किसी गहने की कीमत मैं कहां याद रख पाता हूं?”

विनय के सभी दोस्त और उनकी पत्नियां मुंह विनय की बातें सुन रहे थे, उन्हें उम्मीद नहीं थी कि विनय कभी इतनी बातें कह सकेगा. उम्र में उन सबसे छोटा था शादी को अभी दो साल ही हुए थे इसलिए थोड़ा लिहाज करता था, लेकिन आज राधिका का मज़ाक उड़ाना विनय को खल गया था.

रीमा को विनय की कही एक-एक बात उसके मर्म पर चोट करती लग रही थी. उसे ध्यान आ रहा था कि कैसे उसके बीमार होने पर भी राजेश उसे छोड़कर कहीं भी घूमने-फिरने निकल जाता है, अगर वो रोकना भी चाहे तो राजेश का जवाब होता है, ‘तुम्हें तो कुछ न कुछ हुआ ही रहता है, मैं तुम्हारे पीछे अपनी सोशल लाइफ़ ख़त्म नहीं कर सकता.’

उसे ध्यान आ रहा था कि कैसे भूले-चूके कोई एक गिफ़्ट देने के बाद महीनों राजेश उसकी क़ीमत के बारे में बोल बोल कर रीमा को नीचा दिखाता था. बाहरी लोगों के सामने वो दोनों भले ही आइडियल कपल बनते थे, लेकिन असलियत में उनमें आपस में कितना प्यार था यह भी सभी जानते थे… बस कभी किसी ने खुलकर कहा नहीं. एक-दूसरे के बारे में वो दोनों इतना जान चुके थे कि अब और कुछ जानने की इच्छा ही नहीं रही थी. इसलिए एक घर में रह कर भी अलग-अलग कमरों में सोते थे आपस की तू-तू मैं-मैं कई बार इतनी बढ़ जाती थी कि राजेश, रीमा पर हाथ भी उठा देता था और रीमा हफ़्तों तक मायके में पड़ी रहती थी.

उनके पास पैसा तो था, पर प्यार और परवाह नहीं थी इसीलिए सब के सामने झूठा दिखावा करते रहते थे. कभी जन्मदिन तो कभी शादी की सालगिरह के बहाने एक झूठा पर्दा सा डाल रखा था.

आज रीमा ख़ुद ही अपना आकलन कर रही थी तो उसे समझ आ रहा था कि यह उसके मन में छिपी ईर्ष्या ही तो थी, जो वो जानबूझकर ऐसे खेल ढूंढ़-ढूंढ़ कर लाती थी, ताकि वो राधिका को नीचा दिखा सके, क्योंकि ये तो उसे भी नज़र आता था कि उन दोनों के बीच दिखावे वाला नहीं सचमुच का प्यार है.

आज विनय की कही एक-एक बात रीमा को अपने मुंह पर तमाचे जैसी लग रही थी और राधिका… वो हैरानी और स्नेह से देख रही थी विनय को, जिसने पति के रूप में उसे हमेशा प्यार तो दिया ही था, लेकिन आज अपने दोस्तों के बीच इस प्यार को जता कर उसका सम्मान भी बढ़ा दिया था. विनय ने सभी को बता दिया था कि राधिका के दिल तक पहुंचने का रास्ता विनय का उसके प्रति प्यार और परवाह है और उन्हें किसी झूठे दिखावे की कोई ज़रूरत नहीं है.

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

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