आम आदमी का शायर कहलाने वाले बशीर बद्र साहब अपनी ग़ज़लों और नज़्मों में कॉमन मैन के दुख, तक़लीफ़, समस्याओं और सवालों को शामिल करते हैं. ‘गांव मिट जाएगा, शहर जल जाएगा’ का स्वर भी इसी मिज़ाज का है.
गांव मिट जाएगा शहर जल जाएगा
ज़िन्दगी तेरा चेहरा बदल जाएगा
कुछ लिखो मर्सिया मसनवी या ग़ज़ल
कोई काग़ज़ हो पानी में गल जाएगा
अब उसी दिन लिखूंगा दुखों की ग़ज़ल
जब मेरा हाथ लोहे में ढल जाएगा
मैं अगर मुस्कुरा कर उन्हें देख लूं
क़ातिलों का इरादा बदल जाएगा
आज सूरज का रुख़ है हमारी तरफ़
ये बदन मोम का है पिघल जाएगा
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