इतिहास बदलने की ख़्वाहिश हर शासक की होती है, जबकि ज़रूरत वर्तमान को बेहतर करने की होती है. अदम गोंडवी की कविता पूछती है, आख़िर हम इतिहास में क्या-क्या बदल देंगे?
ग़र चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे
क्या इनसे किसी कौम की तक़दीर बदल दोगे
जायस से वो हिंदी की दरिया जो बह के आई
मोड़ोगे उसकी धारा या नीर बदल दोगे?
जो अक्स उभरता है रसख़ान की नज़्मों में
क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल दोगे?
तारीख़ बताती है तुम भी तो लुटेरे हो
क्या द्रविड़ों से छीनी जागीर बदल दोगे?
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