प्रकृति के शांत विद्रोह-विरोध को शब्द देती हुई चेतन कुम्हारी यह छोटी-सी कविता विकास की क़ीमत चुका रहे दुनियाभर के जंगलों की मुकम्मल तस्वीर खींचती है.
घने जंगल से गुज़रता हाइवे
शानदार दिखता है सिर्फ़ इंसान को
वहां की वनस्पति, जन्तुओं को कभी नहीं
हज़ारों वृक्षों ने अपने प्राण त्यागे
चट्टानों ने अपना अस्तित्व खोया
और नदियां ने रास्ता
बहुत कुछ खोया है इस प्रकृति ने
कभी-कभी हाइवे पर चट्टान का आना
जानवरों का बैठना, पेड़ का गिरना
और दोनों तरफ़ हरे-भरे पेड़ होना
कोई साधारण बात नहीं है
ये सब इस प्रकार से
जंगल से गुज़रते
हाइवे का विरोध कर रहे हैं
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