घर होने और न होने के क्या मायने होते हैं? घर शीर्षक से लिखी अज्ञेय की इन पांच कविताओं को पढ़कर आपको अंदाज़ा हो जाएगा.
1.
मेरा घर
दो दरवाज़ों को जोड़ता एक घेरा है
मेरा घर
दो दरवाज़ों के बीच है
उसमें किधर से भी झांको
तुम दरवाज़े से बाहर देख रहे होगे
तुम्हें पार का दृश्य दीख जाएगा
घर नहीं दीखेगा
2.
तुम्हारा घर
वहां है
जहां सड़क समाप्त होती है
पर मुझे जब
सड़क पर चलते ही जाना है
तब वह समाप्त कहां होती है?
तुम्हारा घर….
3.
दूसरों के घर
भीतर की ओर खुलते हैं
रहस्यों की ओर
जिन रहस्यों को वे खोलते नहीं
शहरों में होते हैं
दूसरों के घर दूसरे के घरों में
दूसरों के घर
दूसरों के घर हैं
4.
घर
हैं कहां जिनकी हम बात करते हैं
घर की बातें
सबकी अपनी हैं
घर की बातें
कोई किसी से नहीं करता
जिनकी बातें होती हैं
वे घर नहीं हैं
5.
घर
मेरा कोई है नहीं
घर मुझे चाहिए
घर के भीतर प्रकाश हो
इसकी भी मुझे चिंता नहीं है
प्रकाश के घेरे के भीतर मेरा घर हो
इसी की मुझे तलाश है
ऐसा कोई घर आपने देखा है?
देखा हो
तो मुझे भी उसका पता दें
न देखा हो
तो मैं आपको भी
सहानुभूति तो दे ही सकता हूं
मानव होकर भी हम-आप
अब ऐसे घरों में नहीं रह सकते
जो प्रकाश के घेरे में हैं
पर हम
बेघरों की परस्पर हमदर्दी के
घेरे में तो रह ही सकते हैं
Illustration: Pinterest