छोटे आकार से लगता है हमारी कोई पुरानी दुश्मनी है. हम छोटों को बेहद मामूली समझने लगते हैं. हमारी प्रचलित कहावतों और लोकोक्तियों में एक है,‘ऊंट के मुंह में जीरा’. यहां हम ऊंट जैसे बड़े जानवर से तुलना करके आकार में छोटे जीरे को तुच्छ और बेहद मामूली साबित करने में जुट जाते हैं. पर डॉ अबरार मुल्तानी की मानें तो छोटा जीरा, सेहत की दृष्टि से हीरो है, जो कई बड़े से बड़े रोगों को ज़ीरो कर सकता है.
जीरा भारतीय घरों की हर एक रसोई में निवास करता है. यह एक सुगंधित मसाला है, जो कई सब्जियों और चावल की कई रेसिपीज़ में उपयोग किया जाता है. यह दो तरह का होता है: एक सफ़ेद जीरा और दूसरा होता है स्याह जीरा. दोनों ही तरह के जीरे आयुर्वेदिक दवाओं में प्रयोग किए जाते हैं, ख़ासकर पाचक रोगों में. दोनों ज़ीरों में सफ़ेद जीरा श्रेष्ठ है. इसे 2 से 5 ग्राम की मात्रा (आधा से एक चम्मच) में लिया जा सकता है. मैं आपको यहां पर सफ़ेद जीरे के कुछ औषधीय उपयोग बता देता हूं:
* जिन माताओं को दूध नहीं आता, उन्हें इसे गुड़ के साथ मिलाकर देते हैं.
* पुराने बुख़ार में भी जीरे को गुड़ के साथ देने से बहुत फ़ायदा होता है.
* ल्यूकोरिया की समस्या में इसे मिश्री में मिलाकर खिलाया जाता है और ऊपर से चावल की धोवन को पिलाया जाता है.
* दस्त लगने पर इसे दही के साथ दिया जाता है.
* अपच और अजीर्ण में इसे गर्म पानी के साथ दिया जाता है.
* मुंह के छालों में इसे इलायची के साथ पानी में उबालकर छानते हैं और उस पानी से कुल्ले करवाने से फ़ायदा होता है.
* दर्द और सूजन होने पर इसे काली मिर्च के साथ पीसकर, लेप बनाकर लगाया जाता है. दाद-खाज-खुजली में भी यह लेप फ़ायदा करता है.
* मुंह के काले धब्बों पर जीरे को पीसकर दूध के साथ लगाने पर काले निशान जल्दी मिट जाते हैं.
* बिच्छू के डंक पर जीरे को सेंधा नमक और शहद के साथ मिलाकर मिश्रण बना लेते हैं, इसे थोड़ा गर्म करके गरम-गरम ही डंक वाली जगह पर लगाया जाता है, जिससे दर्द में बहुत फ़ायदा होता है.
* गांवों में बिच्छू काटने पर बीड़ी में से तंबाकू निकालकर उसमें सफ़ेद जीरा भरकर धूम्रपान करवाते हैं, जिससे बिच्छू का ज़हर उतर जाता है. ऐसे ही धूम्रपान हिचकी की समस्या में भी गांवों में करवाया जाता है.
डॉ अबरार मुल्तानी
सिरीज़: किचन क्लीनिक
*पाठकों से औषधीय उपयोग से पूर्व चिकित्सकीय परामर्श अपेक्षित है.