आलू, बटाटा ,पोटेटो! भारत में केवल 500 साल पहले आया आलू किस हद तक हमारे जीवन में घर कर गया है जब ये सोचती हूं तो लगता है अगर आलू न ही होता या भारत में न आया होता तो भारतीय खान पान कितना अलग होता? हमारी खाने की कितनी ही चीज़ें इससे मरहूम रह जातीं और हम भारतीयों की चटोरी जीभ इसके स्वाद से अनभिज्ञ रह जाती.
-कनुप्रिया गुप्ता, भोजन प्रेमी
आलू ने हमारे देश के न जाने कितने व्यंजनों, सब्जियों और चाट में रंग भरे हैं ये तो शायद आलू को भी नहीं पता होगा. अभी जब ये लिख रही हूं तो बॉलीवुड का एक गाना याद आ रहा है-बटाटा वड़ा… बटाटा वड़ा, दिल नहीं देना था देना पड़ा… माधुरी दीक्षित और अनिल कपूर पर फ़िल्माए गए हिफ़ाज़त फ़िल्म के इस गाने की एक ख़ास बात ये है कि इस गाने का एक मुख्य पात्र है बटाटा वड़ा. मतलब साहब आपने सारी दुनिया के गानों में अलग-अलग चीज़ों का प्रॉप के रूप में उपयोग देखा होगा पर इस गाने में नायिका अपने हाथ में बटाटा वड़ा लेकर डांस कर रही है… ये है इस देश में उस बटाटा वड़ा की पहुंच, जिसे कुछ लोग आलू बोंडा ,आलू बड़ा के नाम से भी जानते है. बिहार का आलू चाप भी इससे काफ़ी मिलता जुलता है .
आलू बड़ा से जुड़ा एक क़िस्सा याद आया. एक दिन घर के बाहर गार्डन में घूमते हुए एक साउथ इंडियन दोस्त मिली और शुरुआती बातचीत के बाद उनने कहा,“आलू बोंडा बनाकर आई हॅूं.’’ तो दूसरी एक दोस्त के मुंह से अचानक निकला,‘‘अरे आप लोग भी आलू बड़े बनाते हैं?’’ तो पहली दोस्त ने जवाब दिया,‘‘हॉं बस, जिसे आप आलू बड़ा कहते उसे हम आलू बोंडा कहते हैं.’’
महाराष्ट्र में यही व्यंजन बटाटा वड़ा कहलाता है, हालांकि वहां इसे ज़रा अलग ढंग से खाया जाता है कभी पाव के साथ वड़ा पाव के रूप में तो कभी मिसल में डालकर. भारत में उत्तर, दक्षिण और पूर्व, पश्चिम चारों दिशाओं में अलग-अलग रूपों में आलू वड़ा खाया जाता है. आलू को उबालकर उसे मैश करके, उसकी सब्जी बनाकर या ऐसे ही मसले आलू में तड़का और मसाले मिलाकर उसे बेसन के घोल में डुबोया जाता है (दक्षिण में इसे चावल के घोल में भी बनाया जाता है) और फिर डीप फ्राइ किया जाता है फिर अपनी मनमर्ज़ी से खाया जाता है. कोई धनिया-पुदीना-मिर्च की चटनी के साथ खाता है तो कोई इमली की खट्टी-मीठी चटनी के साथ, कोई नारियल की चटनी के साथ तो कोई दही चटनी के साथ खाता है. कई लोग तो कटे हुए प्याज़ और हरी मिर्च के साथ भी इसे खाना पसंद करते हैं. जितनी जगहें, उतने तरीक़े, उतने ही स्वाद और सारे लाजवाब!
आख़िर कहां से आया है आलू वड़ा?
आलू वड़ा कितने ढंग से बनाया जाता है ये बात तो हमने कर ली पर जब आपको पता चलेगा की इसका जन्म कहां हुआ तो आपको आश्चर्य होगा. क्यूंकि आप महाराष्ट्रियन लोगों के सामने ये कहेंगे तो वो कहेंगे ये तो हमारे यहां का है, गुजराती इसे अपना कहेंगे, बंगाली अपना और मध्यभारत वाले कहेंगे ये तो हमारे यहां आए दिन बनता है, ये तो हमारा है… पर सच ये है कि यह आया है दक्षिण भारत से. कहा था न आश्चर्यचकित रह जाएंगे. बटाटा वड़ा दक्षिण भारत के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल की देन है और यह किसी विदेशी व्यंजन का भारतीय रूपांतरण नहीं है, बल्कि इसका जन्म भारत में ही हुआ है. यूं तो पांचवीं सदी के कुछ ग्रंथों में इससे मिलते जुलते एक व्यंजन का उल्लेख मिलता है, पर वो ठीक आलू बोंडा नहीं था.
सुप्रसिद्ध खाद्य इतिहासकार (फ़ूड हिस्टोरियन) के टी आचार्य ने अपनी किताब द स्टोरी ऑफ़ ऑर फ़ूड में उल्लेख किया है कि 12वीं सदी के कर्नाटक क्षेत्र में लोगों के बीच आलू बोंडा नाम का व्यंजन ख़ासा प्रचलित था. इस सम्बन्ध में ठोस लिखित प्रमाण 1130 में कर्नाटक के राजा सोमेश्वर द्वारा लिखे गए ग्रन्थ में मिलता है. इस किताब में बोंडा शब्द का उल्लेख मिलता है और आपको जानकर भी आश्चर्य होगा कि समय के साथ पुराने सारे व्यंजनों ने अपना रूप बदला, पर आलू बोंडा कर्नाटक में आज भी उसी रूप में मिलता है, जिस रूप में आज से लगभग 800 साल पहले बनाया जाता था. हां, लेकिन जब ये पूरे भारत में फैला तो इसके रूप में परिवर्तन आए, जैसे-महाराष्ट्र में इसमें हरी मिर्च ज़्यादा डाली जाती है, गुजरात में थोड़ी शक्कर और नींबू का रस, मध्य भारत में मटर के मौसम में आलू में मटर भी मिला दिया जाता है… तो अलग-अलग जगह इसका स्वाद थोड़ा अलग होता है पर रूप तो सब जगह सामान ही है.
आलू बड़े से जुड़ी मेरी यादें
वे तो बेहद मीठी यादें हैं. अब आप कहेंगे आलू बड़े से जुड़ी यादें मीठी कैसे हो सकती हैं? तो क़िस्सा ये है कि मैं जब भोपाल में रहती थी तो वहां कॉलोनी में शरद पूर्णिमा का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता था. कॉलोनी के ग्राउंड में बड़ा टेंट लगाया जाता. सारे लोग वहां इकट्ठा होते. इतने लोगों के लिए बड़े-बड़े भगोनों में खीर बनती और नमकीन में हर बार बनाए जाते आलू बड़े. जानते हैं क्यों? क्योंकि इतने लोगों के लिए लगातार गरमागरम समोसे बनाना बहुत समय लेता है और भजिए बनाने जाएं तो कितने ही बना लिए जाएं, पेट ठीक ढंग से नहीं भरता… तो बहुत सोच-विचार के बाद आलू बड़े फ़ाइनल किए गए. आज भी उस उत्सव का और उन आलू बड़ों का स्वाद मेरे ज़हन में है. तभी तो हम भारतीयों को उत्सवधर्मी और स्वादभगत कहा जाता है, है ना?
तो आप भी हमें लिख भेजिए अपने पसंदीदा आलू बड़े से जुड़ा कोई क़िस्सा, कोई झलक या बातें… इस ईमेल आईडी पर: [email protected]
(बटाटा वड़ा फ़ोटो साभार: dustysfoodieadventures.com)