क्या हमारे देश में ऐसी शादियां भी उम्रभर चल जाती हैं, जिनमें पति-पत्नी के बीच सेक्शुअल संबंध बनते ही नहीं हैं? यदि आप यह सोच रहे/रही हैं कि यह सवाल अजीब है तो आपको जानकार आश्चर्य होगा कि भले ही हमारे पास सही आंकड़े न हों, लेकिन हमारे देश में कई कपल्स ऐसे हैं, जिनके बीच कभी सेक्शुअल रिश्ते नहीं बने और उनकी शादियां ताउम्र निभ गईं. आइए, एक्स्पर्ट्स से पूछताछ करके जानते हैं कि क्या होती है ऐसी शादियों और उनके निभ जाने की वजह.
हमारे देश में कितनी शादियां ऐसी होती हैं, जिनमें पति-पत्नी के बीच सेक्शुअल रिश्ते बनते ही नहीं? यदि आप गूगल पर इस सवाल को सर्च करेंगे तो आपको हमारे देश के लिए इसका कोई डेटा नहीं मिलेगा. और ऐसा इसलिए है कि कई भारतीय लोग इसे किसी समस्या की तरह देखते ही नहीं हैं और ‘‘ख़ुशनुमा वैवाहिक बंधन’’ में ताउम्र बने रहते हैं.
दुनियाभर में भारत ही ऐसा देश है, जहां तलाक़ के मामले सबसे कम होते हैं. एक प्रतिशत से भी कम शादियां यहां तलाक़ तक पहुंचती हैं. यदि सही आंकड़ा बताएं तो 1000 शादियों में से महज़ 13 शादियां ही तलाक़ की वजह से टूटती हैं.
बहुत गहरी है यह समस्या
केरल की विस्मया नायर की ही तरह भारतीय दुल्हनें अपने पति से अलग रहने की जगह ख़ुद को ख़त्म कर देने का चुनाव कर लेती हैं, ताकि वे अपने उस ‘‘प्रिय माता-पिता के परिवार‘‘ को शर्मिंदगी से बचा सकें, जो अपनी बेटी के जीवन की तुलना में समाज के नियमों और पितृसत्तात्मक धार्मिक परंपराओं की ज़्यादा चिंता करता है.
यदि 21 वीं सदी में भी, एक पढ़े-लिखे भारतीय इंसान के लिए भी, एक दुखदाई विवाह के बंधन से बाहर निकलने के लिए मौत ही एकमात्र रास्ता बचता है तो आप ही बताइए कि यहां कितने लोग सेक्स के बारे में बात करते होंगे या फिर एक वैवाहिक रिश्ते में सेक्स की अनुपस्थिति को बातचीत करने का एक मुद्दा मानते होंगे?
यह रूढ़िवादी विकासशील देशों की सच्चाई है
कुछ वर्ष पहले एक विख्यात साइंस जरनल नेचर में इस बारे में एक आर्टकिल आया था कि भारत जैसे रूढ़िवादी विकासशील देशों में, जहां युवक-युवतियों और प्रेमी युगलों को धार्मिक नियम और सांस्कृतिक वर्जनाओं के चलते सेक्स के बारे में बात करने से रोका जाता है या फिर उन्हें शादी से पहले सेक्शुअल संबंध बनाने की इजाज़त नहीं दी जाती, वहां अन्कॉन्सुमेटेड मैरिजेज़ (ऐसे विवाह जहां विवाहित जोड़ों के बीच सेक्शुअल इंटरकोर्स होता ही नहीं है) बहुत ही आम बात है. इस आलेख में यह भी बताया गया था कि कैसे इन रिश्तों के सफल न होने का पूरा दोष और पूरा भार हमेशा ही केवल महिलाओं पर डाल दिया जाता है, क्योंकि वही हैं, जिन्हें बच्चे पैदा कर के समाज को इस बात का सबूत देना होता है कि शादी अच्छी चल रही है.
इस आलेख में भविष्य में इस विषय पर शोध करनेवालों को सलाह दी गई है कि वे इस संबंध में पुरुषों पर ज़्यादा ध्यान दें, क्योंकि महिलाओं की तुलना में पुरुषों के एक ‘‘बड़े तबके’’ को सेक्स संबंधी समस्याएं होती हैं, जैसे- सेक्शुअल प्रदर्शन को लेकर तनाव, शीघ्रपतन यानी प्रिमैच्योर इजेकुलेशन और कई बार वे हस्तमैथुन यानी मैस्टर्बेशन की ग़लत तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इस बात को स्वीकार नहीं करते और किसी से मदद नहीं मांगते, क्योंकि वे समाज की बनाई हुई इस रूढ़ि को तोड़ नहीं पाते कि ‘‘असली मर्द’’ को बिस्तर पर कैसा प्रदर्शन करना चाहिए. ऐसे बहुत से जोड़े सेक्स से रहित रिश्ते में लंबे समय तक बने रहते हैं, कई बार तो जीवनभर, जैसे कि उनका यह रिश्ता कोई अनसुलझा रूबिक क्यूब हो.
एक्स्पर्ट्स भी इस बात से इत्तफ़ाक रखते हैं
हालांकि भारत में सेक्शुल संबंधों के बिना चली आ रही शादियों पर कोई अध्ययन तो नहीं हुआ है, लेकिन एक शख़्स हैं, जिन्होंने इस समस्या को गहराई से समझने का प्रयास किया और वे हैं ओडिशा के एससीबी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर दत्तेस्वर होता, जो वहां प्रोफ़ेसर, यूरोलॉजी हेड और प्रिंसिपल हैं. वे वीवॉक्स के एक्स्पर्ट भी हैं तो हमने उनसे बिना सेक्शुअल संबंधों वाली शादियों के बारे में पूछा.
डॉक्टर दत्तेस्वर होता ने बताया,‘‘भारत में हमें जितनी अन्कॉन्सुमेटेड मैरिजेज़ के बारे में मालूम पड़ता है, वह इस समस्या का केवल एक बहुत ही छोटा-सा हिस्सा है. हम क्लीनिक्स में केवल गिने-चुने लोगों का ही इलाज करते हैं. ज़्यादातर भारतीय तो समस्या का समाधान खोजने की बजाय जीवनभर एक सेक्सलेस शादी में बने रहना ही पसंद करते हैं. वे केवल तभी डॉक्टर के पास आते हैं, जब उनका परिवार उन जोड़ों पर बच्चे पैदा करने का दबाव बनाने लगता है.
‘‘जब बात सेक्स रहित शादियों की हो तो यहां पति-पत्नी की शैक्षणिक योग्यता बिल्कुल मायने नहीं रखती. यदि कुछ मायने रखता है तो वो है-सेक्स के बारे में आपका ज्ञान. जहां महिलाओं में वैजिनिस्मस या अनिच्छा की वजह से वजाइना में होनेवाला तनाव, जिसकी वजह से दर्द होता है, सेक्सलेस रिश्ते की वजह हो सकता है. वहीं पुरुषों में इसकी वजह है, ग़लत तकनीक से मैस्टर्बेट करना, जिसकी वजह से इरेक्शन लंबे समय तक नहीं होता और पेनेट्रेशन में दिक़्क़त आती है.
‘‘कट्टर धार्मिक मान्यताएं इस मुद्दे को और भी मुश्क़िल बना देती हैं. एक व्यक्ति, जिसे हमेशा से ही यह सिखाया गया हो कि मैस्टर्बेशन करना पाप है, वो तो डॉक्टर से कभी इस बारे में बात ही नहीं करेगा या फिर इस बारे में बात ही नहीं करेगा कि वह किस तकनीक से मैस्टर्बेट करता है. तो कुछ कपल बीच का रास्ता निकाल लेते हैं, जैसे-ओरल सेक्स और अपनी समस्या का पूरा निदान ढूंढ़ने की जगह, वे अपना पूरा जीवन इसी तरह गुज़ार देते हैं.’’
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट