सावन यानी व्रत-उपवास वाला मौसम और व्रत वाले मौसम में व्रत के पकवान की बात तो होनी ही चाहिए. क्या आपको लगता है कि साबूदाना भारतीय है? यदि हां तो आप ग़लत हैं! साबूदाना भारतीय नहीं है, लेकिन साबूदाना खिचड़ी खालिस भारतीय है. अब आप ये न कहिएगा कि मैं पहेलियां बुझा रही हूं. भोजन से जुड़ा क़िस्सा सुना रही हूं और क़िस्से दिलचस्प न हों तो भला मज़ा कैसे आएगा? तो चलिए, आज खंगालते हैं इंदौर में मिलनेवाली साबूदाना खिचड़ी के बहाने से इसका इतिहास.
शहर की ख़ुशबू किन चीज़ों से होती है? कहीं इमारतों से कहीं समंदर से, कहीं मछली से, कहीं किसी फ़ैक्ट्री से उठने वाले धुंए से, कहीं मसालों से और कहीं पकवानों की ख़ुशबू से. आपने कितने ही शहर देखे होंगे, उनमें से कुछ ऐसे भी होंगे, जहां की कोई चीज़ या कोई भोजन या फिर मिठाई बड़ी फ़ेमस होगी. दूर-दूर तक लोग उस स्वाद की क़समें खाते होंगे. पर वो पकवान और शहरों में भी अच्छा बनता होगा और मिलता भी होगा आसानी से तो वहां की क़समें कोई दूसरे लोग खाते होंगे.
अच्छा जाने दीजिए, पूरे देश में एक शहर ढूंढ़कर दिखा दीजिए, जहां हर नुक्कड़ पर साबूदाना खिचड़ी मिलती हो… अब आप कहेंगे इन्दौरिन करने लगी फिर इंदौर की तारीफ़, पर अब झूठ तो नहीं बोल रही न मैं! ढूंढ़ लाइए कोई शहर, जहां जगह-जगह साबूदाना खिचड़ी के ठेले हों और व्रत उपवास में ही नहीं साबूदाना खिचड़ी सुबह के नाश्ते में, दोपहर के खाने में या शाम को स्नैक्स के रूप में यानी कि जिसका जब मन पड़े खाई जाती हो. नहीं ढूंढ़ सकेंगे जनाब, मिलेगा ही नहीं कहीं. क्योंकि जैसे दीवाने इंदौर में रहते हैं, वैसे दीवाने और कहां मिलेंगे?
सावन आ गया है और लोग करेंगे व्रत और जितने व्रती होंगे उससे ज़्यादा होंगे वो लोग साबूदाना खिचड़ी खाएंगे और उन्होंने कोई व्रत भी नहीं रखा होगा. आपने इंदौर का नाम पोहे-जलेबी के साथ सुना होगा, पर यक़ीन मानिए इंदौर में जहां पोहा, वहां साबूदाना खिचड़ी. जितना पॉपुलर पोहा, उतनी ही खिचड़ी भी. और पोहा तो हल्का-फुल्का, पर साबूदाना खिचड़ी तो पेट भरनेवाली, ज़्यादा कैलोरी देनेवाली तो ये तो दिन के किसी भी वक़्त पेट पूजा के काम आ जाएगी.
कहानी इंदौरी खिचड़ी की: बात निकली है तो महाराष्ट्र तक ज़रूर जाएगी. क्यों…? क्योंकि साबूदाना खिचड़ी भी है तो महारष्ट्र की देन, पर महाराष्ट्र में ये आपको ढूंढ़े से ही मिलेगी बाज़ारों में. देखा जाए तो साबूदाना खिचड़ी का जन्मदाता महाराष्ट्र है, पर इसको सारे पंख इंदौर में आकर मिले हैं. चाहने वाले भी इंदौर में ही ज़्यादा मिले और स्वाद भी इंदौर में ही निखरा. इंदौर में सांवरिया खिचड़ी वाले की दुकान वर्ष 1983 से है और उसके पहले कभी से ये इंदौर की गली नुक्कड़ों और दुकानों की रानी है. आज के समय में आपको हर उस जगह साबूदाना खिचड़ी मिलेगी, जहां खाने-पीने की और किसी चीज़ का ठेला है और यक़ीन मानिए एक ठेले से दूसरे ठेले की अधिकतम दूरी चलकर पार की जा सकती है. मतलब इंदौर में हर नुक्कड़ पर खानपान का व्यंजन मिलेगा और साथ में मिल जाएगी साबूदाने की खिचड़ी.
इतिहास के झरोखे से: वैसे तो भारत में साबूदाना भी अपना नहीं है. इसका तो आविष्कार ही इंडोनेशिया में हुआ. अब ज़्यादा गहराई में देखेंगे तो सागो कांड सब जगह इंडोनेशिया से पहुंचा, पर जो साबूदाना है उसका वर्तमान रूप ताइवान की देन माना जाता है.
भारत में साबूदाना सबसे पहले वर्ष 1943-1944 में तमिलनाडु में बनाया गया. प्रारंभिक रूप से ये कॉटेज इंडस्ट्री थी, आगे चलकर व्यावसायिक रूप से बड़े पैमाने पर साबूदाने का उत्पादन होने लगा.
महाराष्ट्र में साबूदाना पहुंचने के बाद वहां से साबूदाना खिचड़ी और साबूदाना वडा प्रचलन में आया और यहीं से साबूदाना खिचड़ी इंदौर तक पहुंची.
कैसे बनाई जाती है ये खिचड़ी: घरों में साबूदाना खिचड़ी कैसे बनाई जाती है ये तो हम सभी जानते हैं, पर इंदौर के ठेलों पर साबूदाना खिचड़ी बड़े विशेष ढंग से बनाई जाती है. देखिए होता क्या है एक बड़े से तपेले (तबेला नहीं तपेली/पतीली का बड़ा भाई) में पानी गरम किया जाता है और उसके ऊपर दूसरा बड़ा बर्तन रखा जाता है. उसमें रखे जाते हैं गले हुए साबूदाने और डाले जाते हैं उबले आलू कुछ मसाले हरी मिर्च का तड़का और इस बड़े तपेले को गैस पर रखकर भाप में पकाए जाते हैं साबूदाने और उसमें मिलाए जाते हैं बाक़ी आइटम. फिर जब ये सारे अच्छे से भाप में पाक जाते हैं तो होता है असली जलवा. एक दूसरी तपेली ली जाती है, जिसमें थोड़ी मात्र में ये साबूदाने वाला मिश्रण दाला जाता है, उसमें डाली जाती है थोड़ी पिसी हुई शक्कर, निम्बू, मसालों का मिश्रण, आलू की सेव (इंदौर है भिया तो सेव तो होगी ही!), भुनी मसालेदार मूंगफली और पकड़ा दी जाती है खानेवाले के हाथ में. तो ऐसे बनाई-खाई जाती है सुबह से लेकर देर रात तक ये खिचड़ी.
यादों की खिड़की से: साबूदाना खिचड़ी तो वैसे बचपन से खाते रहे हैं हम. सावन के सोमवार, नवरात्रि, शिवरात्रि, मंगलवार, शनिवार और न जाने कितने व्रत उपवासों के दिन घर में ये बनती थी. और इनमें से कितने ही व्रत हमने भी रखे और खिचड़ी का लुत्फ़ उठाते हुए पुण्य कमाया. पर बाज़ार में खिचड़ी मुझे भी इंदौर जाने के बाद ही देखने मिली. मेरे लिए भी ये अचम्भा-सा था कि लोग हर कभी खिचड़ी खा रहे हैं. खिचड़ी की ट्रीट दी जा रही, खिचड़ी की पार्टियां दी जा रहीं और लोग इतने चाव से खिचड़ी खा रहे. अब हालांकि मैं व्रत-उपवास कम ही करती हूं, पर खिचड़ी घर में शौक़ से बनाई जाती है, वो भी आलू, टमाटर वाली. अब घर में एक पांच साल का खिचड़ी का शौक़ीन भी है, जो थोड़े-थोड़े दिनों में कहता रहता है- मम्मी, साबूदाने की खिचड़ी कब बनाओगी? अच्छा बताइए तो आपके शहर में कहीं मिलती है साबूदाने की खिचड़ी? और आपके घर में कैसे बनाई जाती है खिचड़ी? आपकी बातों का इंतज़ार रहेगा कमेंट करिए या बताइएगा इस आईडी पर: oye.aflatoon.com
जल्द आऊंगी अगली बातों के साथ, नए क़िस्सों के साथ. तब तक के लिए बनाइए, खाइए और खिलाइए
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट