आर्टिफ़िशल इंटेलिजेंस यानी एआइ के बारे में हमें हॉलिवुड की साइंस फ़िक्शन फ़िल्में तब से चेताती रही हैं, जबकि एआइ टर्म का ईजाद भी नहीं हुआ था. कैसे एआइ और स्मार्ट फ़ोन का तालमेल आपको और हमको अपनी गिरफ़्त में ले रहा है और आगे यह क्या-क्या कर सकता है, इसके बारे में पढ़िए प्रकाशक व लेखक अशफ़ाक अहमद का यह नज़रिया. जहां आप इस सवाल का जवाब जानेंगे कि कहीं एआइ आपकी पसंद-नापसंद को दिशा देने का काम तो नहीं कर रहा है? इस सीरीज़ में एआइ पर एक और आलेख आप तक जल्द पहुंचाएंगे हम.
यह तो आप अपने अनुभवों और मेरे पहले आलेख से जान ही गए होंगे कि किस तरह दिनों दिन परिष्कृत होता एआइ सिस्टम लोगों को कंट्रोल कर रहा है. आज हम इसके जो दूसरे और ख़तरनाक साइड इफ़ेक्ट्स हैं, उन्हें छोड़ कर हम केवल एक इफ़ेक्ट पर बात करें कि कैसे यह आपकी पसंद/नापसंद/विरोध/समर्थन आदि को नियंत्रित कर के एक ख़ास दिशा में मोड़ रहा है तो इसे दो तरह के उदाहरणों से इसे समझा जा सकता है, एक यह कि क्यों यह पोस्टकर्ता यानी मुझ पर अप्लाई नहीं हो सका और दूसरा यह कि कैसे यह एक बड़े इंटरनेट उपभोक्ता वर्ग पर लागू है.
इंटरनेट और एआइ का यह ऐल्गरिदम, उत्पाद बिक्री, व्यक्ति/पार्टी/संगठन से सम्बंधित विरोध/समर्थन को तय करने के संदर्भ में लगातार अपना हंड्रेड पर्सेंट दे रहा है. यह नेट से सम्बंधित मोबाइल/टैबलेट/लैपटॉप/डेस्कटॉप हर उस माध्यम पर लागू है, जो आपके लिए ज़रूरी डिवाइस/गैजेट बन चुका है और जिसके बिना अब आपके लिए एक क़दम भी चलना मुश्किल है. यही उस आर्टिफ़िशल इंटेलिजेंस का मूल टूल है—जहां वह बड़ी बारीक़ी से आपके दिमाग़ से खेलता है.
मान लेते हैं कि आपके सामने कुछ दिलचस्प आता है, जो थोड़ी देर आपको स्क्रीन पर रोक लेता है— इससे इसे एक हिंट मिलता है आपकी रुचि के विषय में. माना कि यह किसी नेता से सम्बंधित कोई दिलचस्प वाक़या है, फिर भले इसका राजनिति से कोई सीधा रिश्ता न हो और यह उस नेता की छवि को बिगाड़ने या चमकाने वाला, कुछ भी हो सकता है. किसी एक प्लैटफ़ॉर्म पर (मसलन- फ़ेसबुक) किसी भी एक नेता को इमैजिन कर लीजिए और कोई भी एक पक्ष चुन लीजिए.
मान लीजिए आपने इसी मंच पर प्रधानमंत्री को चुना, उसके समर्थन के पक्ष को चुना. तो अब भले उसी नेता के ख़िलाफ़ सैकड़ों अकाट्य तर्कों और सबूतों सहित लिखित कंटेट/फ़ोटो/वीडियो इसी मंच पर उपलब्ध हों और भले आपकी फ्रेंडलिस्ट में उस कंटेंट को पोस्ट करने वालों की भरमार हो— लेकिन उस कंटेंट को आप तक न्यूनतम पहुंचने दिया जाएगा और इसकी बजाए इसी नेता के समर्थन में, छवि चमकाने वाली पोस्टों को (लिखित कंटेंट/फ़ोटो/वीडियो) आपके सामने लगातार लाया जाएगा… अगर आपकी फ्रेंडलिस्ट के कोई लोग यह सब पोस्ट नहीं कर रहे तो सजेस्टेड और स्पॉन्सर्ड पोस्टों के रूप में यह सब आपके सामने लाया जाएगा, जिनमें ज़्यादातर पेजेस होंगे, जो प्रोफ़ेशनल्स मैनेज कर रहे हैं.
इससे आपमें एक धारणा विकसित होगी कि अमुक नेता ईमानदार और अच्छा व्यक्ति है और आगे हर मंच पर (इंस्टा/ट्विटर/यूट्यूब/गूगल) इसी से रिलेटेड परोसा जाने वाला कंटेंट आपकी धारणा को पुख़्ता करता चला जाएगा और विरोध की सारी बातें आपके लिए बेमानी हो जाएंगी. आपको वे बातें सेंसलेस, झूठी और प्लांटेड लगेंगी. अपनी जगह आप सोचेंगे कि यह सब स्वतःस्फूर्त है और जो आपकी धारणा है, वह आपने अपनी स्वतंत्र चेतना के साथ बनाई है लेकिन यह सच नहीं होगा.
असल में आपके दिमाग़ को एक फ्रीक्वेंसी पर चलाया गया है और परिणामतः आप एक कंट्रोल्ड प्रोडक्ट बन गए हैं, जिसका मनचाहा इस्तेमाल अब वे कर सकते हैं, जिन्होंने इसके पीछे पैसा इनवेस्ट किया है. इसी बात को आप दूसरा मंच (सपोज़ इंस्टा) चुन कर, दूसरे नेता (सपोज़ विपक्षी गांधी) के समर्थन का पक्ष चुन कर आज़मा सकते हैं… और या फिर दोनों जगह इसके उलट पक्ष चुन कर इसे चेक कर सकते हैं.
यहां जो ‘सब्जेक्ट’ है, वह किसी कमर्शल उत्पाद के अतिरिक्त कोई धर्म, धर्म से जुड़ा ज़िंदा या मर चुका महापुरुष, खेल या मनोरंजन जगत से जुड़ा कोई ज़िंदा या मुर्दा सेलिब्रिटी, समाज सेवा से जुड़ा कोई ज़िंदा या मुर्दा महापुरुष या फिर राजनीति से जुड़ा कोई वर्तमान या दिवंगत नेता हो सकता है— हर सब्जेक्ट के पीछे एक या सैकड़ों इनवेस्टर मौजूद हैं और यह ऐल्गरिदम आधारित एआइ उनके एजेंट के तौर पर अपने काम को अंजाम दे रहा है.
इस तरह आपकी पसंद/नापसंद और विरोध/समर्थन को नियंत्रित किया जाता है और आपकी आस्था/निष्ठा/भक्ति तक को डिवेलप किया जाता है, साथ ही इसके माध्यम से आपके प्रेम और घृणा तक को दिशा दिखाई जाती है… उदाहरणार्थ- आप ख़ुद को मौजूदा ट्रेंड वाला कट्टर सनातनी मानते हैं तो आपको इंटरनेट से जुड़े इन माध्यमों के सहारे मुस्लिम कट्टर/चरमपंथियों से जुड़े एक से एक कांड (भारत के न मिलें तो दुनिया के किसी भी हिस्से से ले लिए जाएंगे) लगातार परोसे जाते रहेंगे, ताकि आपकी उस धारणा को पुष्टि मिल सके और आप उस ट्रैक के एक संभावित प्रोडक्ट बन सकें.
ठीक ऐसा ही तब भी होगा, जब आपका फ़ोकस हिंदू चरमपंथियों की तरफ़ हल्का सा भी शिफ़्ट हो जाए और उस तरह की चीज़ों में थोड़ी दिलचस्पी दिखा लें या आप प्रकृति, किसी जीव या शख़्स में दिलचस्पी का ऑप्शन चुनिए और यह आपको उससे प्रेम करना सिखा देगा. उत्पाद बिक्री में तो इसका इस्तेमाल सबसे ज़्यादा हो रहा है… आप आइफ़ोन असल में स्वतःस्फूर्त तौर पर पसंद नहीं करते, एक्चुअली यह आपको पसंद करवाया गया है, ताकि आप सिर्फ़ अपने स्टेटस के शो ऑफ़ के लिए डेढ़ लाख का भी फ़ोन खरीद सकें. यह एक उदाहरण है कि कैसे आपको एक ख़ास दिशा में सोचने और व्यवहार करने के लिए ट्रिगर किया जाता है.
इस आलेख में दूसरा उदाहरण था कि इस पोस्टकर्ता यानी मुझ पर यह टेक्नोलॉजी क्यों बेअसर है… इस बात का आकलन आपको यह बताएगा कि आप कैसे एआइ के चंगुल से बचे रह सकते हैं, लेकिन इसके लिए आपको एआइ पर लिखा मेरा अगला आलेख पढ़ना होगा.
फ़ोटो साभार: फ्रीपिक