क्या समानता हो सकती है ईश्वर और इंटरनेट में? जबकि एक ने इंसान को रचा है, दूसरे को इंसान ने बनाया है. पर कवि तो होते ही हैं, अपनी कविताओं के माध्यम से चीज़ों को देखने की नई दृष्टि देने के लिए. कवि अरुण चन्द्र रॉय अपनी कविता ‘ईश्वर और इंटरनेट’ के माध्यम से दोनों की तुलना करते हुए इनके बीच की समानता भी बता रहे हैं.
बाज़ार
है सजा
ईश्वर और इंटरनेट
दोनों का
ईश्वर
और इंटरनेट
एक जैसे हैं
ईश्वर विश्वव्यापी है
इंटरनेट भी
कण-कण में
समाए हुए हैं दोनों
हर ज्ञानी-अज्ञानी के
रोम-रोम में
रचे-बसे हैं
दोनों
जितने पत्थर
उतने ईश्वर
मंदिरों से
मज़ारों तक
गिरजा से
गुरूद्वारे तक
गली-गली
हर चौबारे पर
मिल जाएगा
ईश्वर का रूप
निराकार
साकार
सनातन
चिरंतन
इंटरनेट के भी!
आस्तिक
नास्तिक
सगुन
निर्गुण
अद्वैत
द्वैत
इंटरनेट के रूप हैं
ईश्वर के भी
सुबह से
देर रात तक
ईश्वर
और इंटरनेट
दोनों के दरबार
भरे रहते हैं
दोनों
वर्चुअल हैं
आभासी
इन्हें महसूस किया जा सकता है…
छुआ नहीं जा सकता
दोनों की
दुकानें सजी हैं
बाज़ार सजा है
पण्डे और पुरोहित हैं
प्रचारक और
पी आर कंपनियां हैं
एजेंट्स हैं
ईश्वर को
नहीं देखा मैंने
भूख मिटाते
रोग भागते
हां,
ज़रूर देखा है
अपने प्रांगण में पैदा
करते भिखारी
इंटरनेट भी
भूख नहीं मिटाता
रोग नहीं भगाता
ईश्वर युवाओं की
पसंद है
और इंटरनेट भी
बुज़ुर्गों का
टाइमपास है
ईश्वर
पोर्न
सेक्स
उन्माद
जेहाद
व्याभिचार
दोनों हैं यहां
अंतर
इतना भर है कि
ईश्वर को पाने का
माध्यम बनता जा रहा है
इंटरनेट
आस्था का
दूसरा नाम
ना बन जाए
इंटरनेट…
विश्वव्यापी जाल
ईश्वर और इंटरनेट
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