विसंगियों के ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार की यह ग़ज़ल कई विसंगत जोड़ियों को बेहद नज़ाकत से बताती है.
जाने किस-किसका ख़्याल आया है
इस समंदर में उबाल आया है
एक बच्चा था हवा का झोंका
साफ़ पानी को खंगाल आया है
एक ढेला तो वहीं अटका था
एक तू और उछाल आया है
कल तो निकला था बहुत सज-धज के
आज लौटा तो निढाल आया है
ये नज़र है कि कोई मौसम है
ये सबा है कि वबाल आया है
इस अंधेरे में दिया रखना था
तू उजाले में बाल आया है
हमने सोचा था जवाब आएगा
एक बेहूदा सवाल आया है
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