कवि कुंवर बेचैन की कविताएं भले ही छोटी होती थीं, पर उनकी फ़िलॉसफ़ी बहुत ही बड़ी होती थी. दूरियों और नज़दीकियों के फ़लसफ़े को बयां करती उनकी कविता ‘जिस मृग पर कस्तूरी है’.
मिलना और बिछुड़ना दोनों
जीवन की मजबूरी है
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हममें दूरी है
शाखों से फूलों की बिछुड़न
फूलों से पंखुड़ियों की
आंखों से आंसू की बिछुड़न
होंठों से बांसुरियों की
तट से नव लहरों की बिछुड़न
पनघट से गागरियों की
सागर से बादल की बिछुड़न
बादल से बीजुरियों की
जंगल जंगल भटकेगा ही
जिस मृग पर कस्तूरी है
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हममें दूरी है
सुबह हुए तो मिले रात-दिन
माना रोज़ बिछुड़ते हैं
धरती पर आते हैं पंछी
चाहे ऊंचा उड़ते हैं
सीधे सादे रस्ते भी तो
कहीं कहीं पर मुड़ते हैं
अगर हृदय में प्यार रहे तो
टूट टूटकर जुड़ते हैं
हमने देखा है बिछुड़ों को
मिलना बहुत ज़रूरी है
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हममें दूरी है
Illustration: Pinterest