इश्क़ में पड़े हर इंसान को सबसे अधिक कुछ मिलता है तो वह है इंतज़ार. इश्क़ के इंतज़ार में पड़े व्यक्ति के दिल के हालात बयां करती है जावेद अख़्तर की कविता ‘कभी यूं भी तो हो’.
कभी यूं भी तो हो
दरिया का साहिल हो
पूरे चांद की रात हो
और तुम आओ
कभी यूं भी तो हो
परियों की महफ़िल हो
कोई तुम्हारी बात हो
और तुम आओ
कभी यूं भी तो हो
ये नर्म मुलायम ठंडी हवाएं
जब घर से तुम्हारे गुज़रें
तुम्हारी ख़ुश्बू चुराएं
मेरे घर ले आएं
कभी यूं भी तो हो
सूनी हर मंज़िल हो
कोई न मेरे साथ हो
और तुम आओ
कभी यूं भी तो हो
ये बादल ऐसा टूट के बरसे
मेरे दिल की तरह मिलने को
तुम्हारा दिल भी तरसे
तुम निकलो घर से
कभी यूं भी तो हो
तनहाई हो, दिल हो
बूंदें हो, बरसात हो
और तुम आओ
कभी यूं भी तो हो
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