दलित साहित्य का बड़ा नाम श्यौराज सिंह बेचैन अपनी कविताओं में दलितों, स्त्रियों की बदहाली और संघर्ष की बात करते हैं. उनकी कविताओं में व्यंग्य भी होता है. उनके चर्चित कविता संग्रह चामर की चाय की यह कविता आज़ादी पर एक करारा व्यंग्य है.
सन्तोष के लिए
कोई वजह नहीं है
जाति से जाति लड़ती है,
धर्म से धर्म भिड़ता है
ख़बर है उसको
हर दिन की कि जो
अख़बार पढ़ता है
ऐसे में
भाईचारे के लिए
भी कोई जगह नहीं
यह कैसा फल है
कैसा स्वाद है कि
जिसका
जीभ को
पता नहीं है
आज़ादी के
आम-ख़ास में
क्यों कर मज़ा नहीं है
समाज
बदलेगा
तो
बदलेगा देश भी
सियासत
बदलने से बहुत
कुछ कम बदलता है
सियासत में
एक अछूत का बेटा
राष्ट्रपति तक
बन सकता है
अपील कर सकता है
न्याय के लिए
अमन के लिए
आज़ादी के लिए
न्यायपालिका में
रिज़र्वेशन के लिए
मीडिया में
भागीदारी के लिए
किन्तु,
सामाजिक-सत्ता जो करती है,
उसकी अपील
के ठीक उलट करती है
गणतन्त्र के दिन भी
दलितों पर ज़ुल्म करती नहीं डरती है
चक्र यही चलता रहा,
तो कौन अपना कहेगा
आज़ादी को
कौन कहेगा कि
हम भी स्वतन्त्र हैं
यंत्र-तत्र सर्वत्र
कारगर
जात्याभिमानियों
की जड़ता के यन्त्र हैं
आज हां,
हम स्वतन्त्र हैं
कवि: श्यौराज सिंह बेचैन
कविता संग्रह: चमार की चाय
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
Illustration: Pinterest