समय के साथ कई चीज़ें बदल जाती हैं. पर इस बदलाव में भी कई चीज़ें नहीं बदलतीं. रूपक के तौर पर किताबों का इस्तेमाल करते हुए कवि अरुण चन्द्र रॉय न बदलनेवाले कुछ अहसासों की याद दिला रहे हैं.
1.
क्या
तुमने भी
महसूस किया है
इन दिनों
ख़ूबसूरत होने लगे हैं
क़िताबों की जिल्द
और
पन्ने पड़े हैं
ख़ाली
2.
क्या
तुम्हें भी
दीखता है
इन दिनों
क़िताबों पर पड़ी
धूल का रंग
हो गया है
कुछ ज़्यादा ही
काला
और
कहते हैं सब
आसमान है साफ़
3.
क्या
तुम्हें भी
क़िताबो के पन्नों की महक
लग रही है कुछ
बारूदी-सी
और उठाए नहीं
हमने हथियार
बहुत दिनों से
4.
क्या
तुमने पाया है कि
क़िताब के बीच
रखा है
एक सूखा गुलाब
जबकि
ताज़ी है
उसकी महक
अब भी
हम दोनों के भीतर
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