कई बार हममें से कई लोगों का मन इतनी पीड़ा से भरा होता है कि उन्हें केवल स्पेस चाहिए होता है. कोई सलाह नहीं, बस, फ़कत दो कान चाहिए होते हैं, जो उनकी समस्याओं को सुन लें, सुनभर लें. कोई हिदायत न दें, जज न करें, बस सुन लें… कभी किसी की ज़िंदगी में महज़ कान बनकर उतरना कितना मददगार साबित हो सकता है, यही बात आपको जयंती रंगनाथन की डायरी के इन पन्नों के ज़रिए ख़ूबसूरती से पता चलेगी.
कल रात मेरी बिल्डिंग में रहने वाली एक युवा लड़की को अर्से बाद टहलते देखा. दूर से देखा तो पहचान ही नहीं पाई. पास आई तो मैंने चौंक कर पूछा,‘तुम डायटिंग कर रही हो?’
उसके चेहरे पर बेबसी वाली स्माइल आ गई,‘लाइफ़ ने डायटिंग करवा दी…’
अपने हज़्बंड से अलग हो कर अपनी मां के साथ रहने वाली इस लड़की की कोरोना काल में नौकरी छूट गई. वह दुखी थी. उसे बस, सुनने के लिए दो कान चाहिए थे. मिनटभर में जैसे बांध फट गया…
‘नौकरी जाने का उतना ग़म नहीं, जितना मां के तानों से हो रहा है.’ उसकी सोने-जागने की आदतें बदल गई हैं.
‘मुझे तो नींद ही नहीं आती. कुछ भी कर लूं. रातभर जागती हूं, क्योंकि उस वक़्त मां सोती हैं. सुबह जब वो जागती हैं, मैं सोने चली जाती हूं. मैं उनके सामने आना ही नहीं चाहती. उनकी बातें बेशक़ सही होती हैं, पर शायद इस वक्त मैं सुनना नहीं चाहती.’
उस लड़की से मुझे हमदर्दी होने लगी. मैंने जानना चाहा कि वो क्या करना चाहती है?
‘मैं पता नहीं क्या करना चाहती हूं? एक वक़्त था जब मां कहती थीं अपने अफ़लातूनी आयडियाज़ शादी के बाद पूरी करना. फिर हज़्बंड आड़े आ गया. उसके अंदर भी मेरी मां थी, जो हर काम के लिए टोकता था. वापस आई हूं तो मेरी मां, मां के साथ-साथ हज़्बंड भी बन गई है. सच कहूं तो अब किसी को कैफ़ियत देने का मन नहीं होता. मन करता है कहीं ग़ायब हो जाऊं.’
मुझे दो दिन पहले देखी वेब सीरीज़ ‘फ़ेम गेम’ या आ गई. सीरीज़ की नायिका सुपर स्टार अनामिका भी कुछ यूं ही कहती है.
मैंने ऐसे ही कह दिया,’मां को कुछ दिनों के लिए कहीं और क्यों नहीं भेज देती? उन्हें भी चेंज हो जाएगा और तुम्हें भी…’
उसकी आंखों में सितारे उतर आए.
‘ओह. फिर मुझे घर से भागना नहीं पड़ेगा.’
अचानक मेरा हाथ पकड़ कर बोली,‘मुझे ग़लत मत समझिए. आई लव हर. पर इस समय मुझे वही करने का मन है जो मैं चाहती हूं. मेरे पास इतने पैसे हैं कि सालभर और निकल जाएगा. मैं अकेली कहीं घूम आऊंगी. ख़ूब सोऊंगी, रोज बर्गर मंगा कर खाऊंगी, रात को तेज़ आवाज़ में रोऊंगी, बिल्ली पाल लूंगी. मुझे लगता है फिर मैं सोच पाऊंगी कि मुझे करना क्या है?’
वो रिलैक्स्ड लग रही थी. हम दोनों साथ में पांच हज़ार क़दम चल चुके थे. मैंने सोचा उससे कहूं कि माधुरी दीक्षित की वेब सीरीज़ फ़ेम गेम देख ले. पर लगा, इस वक़्त नहीं. जब वह अकेली होगी, तो देख ही लेगी. आज इस समय उसे ज्ञान नहीं चाहिए, बस दो कान चाहिए. यह कहने वाला चाहिए कि तुम ठीक हो. तुम्हें वो करना चाहिए, जो तुम्हें अच्छा लगे. मैंने वही किया.
वो ख़ुश है और मैं ख़ाली हूं.
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