मां और बेटी दो अलग-अलग पीढ़ियों और सोच का प्रतिनिधित्व करती हैं. बावजूद एक समय के बाद हर बेटी अपनी मां की तरह लगने लगती है. मातृत्व दिवस को समर्पित लेखिका-कवयित्री अनीता रवि की कविता ‘मां और मैं’ बड़े हौले से यह बता जाती है.
मां कहती थी कि वो भी कविताएं सोचती रहती थी,
लम्बी लम्बी कविताएं और स्वेटर बुनती रहती थी
स्वेटर पूरा बन जाता था
और फिर थकान से उसकी आंख लग जाती थी
और वो कविता भूल जाती थी
मां ने मुझे भी समझाया कि सिलाई बुनाई सीख ले,
ये लड़कियों के लिए बहुत ज़रूरी है
पर मैंने कहा कि नहीं मां, मैं कविता लिखूंगी,
देखना तुम
पर वो सिर्फ़ कांच का सपना था
अब मैं सोचती हूं कि सिलाई बुनाई ही सीख लेती
कविताओं से कोई घर चलता है?
पर मैं अब भी लम्बी-लम्बी कविताएं सोचती हूं
मुझे पता ही नहीं चलता कि कब मेरे सिद्धहस्त हाथों से
झटपट लज़ीज़ परांठे बन जाते हैं और मैं कविता भूल जाती हूं
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