मुकम्मल इंसान बनने के चक्कर में हम इतने प्राकृतिक हो गए हैं कि अपना हिस्सा मांगने में भी संकोच करने लगे हैं. जानें दीवार के ऊपर क्या होता है, जहां एक कौआ और एक आदमी बैठा है.
मैं दीवार के ऊपर
बैठा
थका हुआ भूखा हूं
और पास ही एक कौआ है
जिसकी चोंच में
रोटी का टुकड़ा
उसका ही हिस्सा
छीना हुआ है
सोचता हूं
की आएं!
न मैं कौआ हूं
न मेरी चोंच है
आख़िर किस नाक-नक्शे का आदमी हूं
जो अपना हिस्सा छीन नहीं पाता!
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