जो हमारे पास होता है, उस उससे ज़्यादा उस चीज़ को पाने की कामना करते हैं, जो हमारे पास नहीं होता. मैं तो वही खिलौना लूंगा कविता में इसी हक़ीक़त को रेखांकित किया गया है.
मैं तो वही खिलौना लूंगा मचल गया दीना का लाल
खेल रहा था जिसको लेकर राजकुमार उछाल-उछाल
व्यथित हो उठी मां बेचारी-था सुवर्ण-निर्मित वह तो
खेल इसी से लाल, नहीं है राजा के घर भी यह तो!
राजा के घर! नहीं-नहीं मां, तू मुझको बहकाती है
इस मिट्टी से खेलेगा क्या राजपुत्र, तू ही कह तो
फेंक दिया मिट्टी में उसने, मिट्टी का गुड्डा तत्काल
मैं तो वही खिलौना लूंगा–मचल गया दीना का लाल
मैं तो वही खिलौना लूंगा–मचल गया शिशु राजकुमार
वह बालक पुचकार रहा था पथ में जिसको बारम्बार
वह तो मिट्टी का ही होगा, खेलो तुम तो सोने से
दौड़ पड़े सब दास-दासियां राजपुत्र के रोने से
मिट्टी का हो या सोने का, इनमें वैसा एक नहीं
खेल रहा था उछल-उछलकर वह तो उसी खिलौने से
राजहठी ने फेंक दिए सब अपने रजत-हेम-उपहार
लूंगा वहीं, वही लूंगा मैं! मचल गया वह राजकुमार
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