उर्दू शायरियां न केवल शब्दों की ख़ूबसूरती और अपनी तहजीब के लिए जानी जाती हैं, पर उनमें छोटी-छोटी सलाहतें भी भरपूर होती हैं. निदा फ़ाज़ली की यह ग़ज़ल उसी का उदाहरण है.
मुहब्बत में वफ़ादारी से बचिए
जहां तक हो अदाकारी से बचिए
हर एक सूरत भली लगती है कुछ दिन
लहू की शोबदाकरी (धोखा) से बचिए
शराफ़त आदमियत दर्द-मन्दी
बड़े शहरों में बीमारी से बचिए
ज़रूरी क्या हर एक महफ़िल में आना
तक़ल्लुफ़ की रवादारी (उदारता) से बचिए
बिना पैरों के सर चलते नहीं हैं
बुज़ुर्गों की समझदारी से बचिए
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