आज का दौर हो या दशकों पहले का. जब कभी तानाशाही जैसा कुछ दिखाई देता है तो मीडिया भले ही लंबलेट करने लगे साहित्यकार तानाशाहों के विरोध में खड़े हो जाते हैं. क्रांतिकारी कवि बाबा नागार्जुन ने इंदिरा गांधी की तानाशाही के ख़िलाफ़ काफ़ी कुछ लिखा. ‘मोर न होगा, उल्लू होंगे’ बाबा नागार्जुन की इसी कलेवर की कविता है.
ख़ूब तनी हो, ख़ूब अड़ी हो, ख़ूब लड़ी हो
प्रजातंत्र को कौन पूछता, तुम्हीं बड़ी हो
डर के मारे न्यायपालिका कांप गई है
वो बेचारी अगली गति-विधि भांप गई है
देश बड़ा है, लोकतंत्र है सिक्का खोटा
तुम्हीं बड़ी हो, संविधान है तुम से छोटा
तुम से छोटा राष्ट्र हिन्द का, तुम्हीं बड़ी हो
ख़ूब तनी हो, ख़ूब अड़ी हो, ख़ूब लड़ी हो
गांधी-नेहरू तुम से दोनों हुए उजागर
तुम्हें चाहते सारी दुनिया के नटनागर
रूस तुम्हें ताक़त देगा, अमरीका पैसा
तुम्हें पता है, किससे सौदा होगा कैसा
ब्रेझनेव के सिवा तुम्हारा नहीं सहारा
कौन सहेगा धौंस तुम्हारी, मान तुम्हारा
हल्दी. धनिया, मिर्च, प्याज़ सब तो लेती हो
याद करो औरों को तुम क्या-क्या देती हो
मौज, मज़ा, तिकड़म, ख़ुदगर्जी, डाह, शरारत
बेईमानी, दगा, झूठ की चली तिजारत
मलका हो तुम ठगों-उचक्कों के गिरोह में
ज़िद्दी हो, बस, डूबी हो आकण्ठ मोह में
यह कमज़ोरी ही तुमको अब ले डूबेगी
आज नहीं तो कल सारी जनता ऊबेगी
लाभ-लोभ की पुतली हो, छलिया माई हो
मस्तानों की मां हो, गुण्डों की धाई हो
सुदृढ़ प्रशासन का मतलब है प्रबल पिटाई
सुदृढ़ प्रशासन का मतलब है ‘इन्द्रा’ माई
बन्दूकें ही हुईं आज माध्यम शासन का
गोली ही पर्याय बन गई है राशन का
शिक्षा केन्द्र बनेंगे अब तो फौजी अड्डे
हुकुम चलाएंगे ताशों के तीन तिगड्डे
बेगम होगी, इर्द-गिर्द बस गूल्लू होंगे
मोर न होगा, हंस न होगा, उल्लू होंगे
Illustration: Pinterest